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संजय असवाल

Tragedy

4.7  

संजय असवाल

Tragedy

अब मैं मौन रहता हूं

अब मैं मौन रहता हूं

2 mins
504


अब मैं मौन रहता हूं 

सब कुछ देख कर भी 

चुप्पी साध लेता हूं,

हां मैने होंठों को 

सीना भी सीख लिया है

सही को गलत 

गलत को सही

दुनियां की नजरों से देखना

सीख लिया,

मैं खुश था कभी

अपनी आभासी दुनियां में,

जहां न छल था

न कपट 

न कोई विरोधाभास,

ना बात बात पर 

अहम की कड़वाहट,

जहां बस 

सब सही सब सत्य था,

सब खुश थे

मैं खुश था,

पर अब फंस गया हूं

इस दुनियां के मकड़ जाल में,

जहां देखता हूं अपने आस पास 

छद्म रूपी प्रपंच,

मुखोटों में छिपे चेहरे

होंठों में कातिल मुस्कान

और गहरा शतिरानापन लिए

अजनबी भीड़,

जो अपनी सी लगती है

पर अपनी नही,

जो बस भागती है 

दौड़ती है 

भय पैदा करती है

झूठ का पुलिंदा लिए

झुंड में,

मैं बेहद डरता हूं

मैं इससे लड़ नही सकता

ना मुझमें साहस है

इसलिए मुझे अक्सर

मौन होना पड़ता है,

मन बेशक व्यथित होता है

खुद को अंदर से रोकता हूं,

दुःखी बहुत होता हूं

जब सत्य को बेबस 

हरदम हारा हुआ देखता हूं

धूर्त मक्कारी 

अयारियों के फंदों में 

घुट घुट मरते देखता हूं,

मैं फिर मौन हो जाता हूं

जब रिश्तों की गांठों को 

अक्सर खुलते देखता हूं

अपनों को रंग बदलते 

गिरगिट सा हुए देखता हूं,

मैं अब मौन रहता हूं 

मतलबी दुनियां है

मतलब के लोग देखता हूं

लोगों के विश्वास को

तार तार हुआ देखता हूं,

मैं क्यों ना मौन रहूं

जहां ना है कोई अपना 

सब दिखते पराए

बस एक भीड़ है

उन्माद लिए हर ओर 

जो रौंद देती है

अपनों के ही अरमानों को,

कत्ल कर देती है

हम सायों को

ठगती है

विश्वास को 

डराती है मन को,

बस झूठ, दुराग्रह, 

छल और कपट

हर ओर बढ़ता हुआ

देखता हूं

तब मैं मौन हो जाता हूं......!



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