अब कोई टोकता नहीं
अब कोई टोकता नहीं
प्रिय डायरी,
बंदी में
बड़प्पन बच्चों ने दिखाया है।
पहले
झोली वाला बाबा आता था-
बच्चों को ले जाता था,
फिर बच्चों के रोने पर
गब्बर आया,
अब अम्मा ने
हमको कोरोना का डर दिखाया है
होती थी
रोज़ झड़प खिलौनों पर,
किताबों पर, भीम और पोकोमैन पर,
मिठाई पर
और अम्मा की गोदी पर,
अब सब कुछ
आप ही साझा हो गया है।
नहीं हुए
एग्ज़ाम, वाह-वाह!
फिर भी नई किताबें होंगी,
नया बस्ता, नई वॉटर बॉटल होगी,
पुराने दोस्तों की टोली में
नयों की भरती होगी;
टीचर ने ख़ुद ही कहलाया है।
जितना चाहो
अब दिन भर टीवी देखो
कोई रोकता नहीं,
फोन मिलाओ-
मित्रों से जी भर बातें कर लो,
अब कोई टोकता नहीं;
बंदिशों का अब हुआ सफाया है।
मम्मी-पापा, अंकल-आंटी
घूम रहे हैं सारे,
कुछ काम निकाले या यूं ही;
बंदी है, घर ही पर रहना-
हमको समझाया है,
एक बार फ़िर-
कहनी और करनी का फ़र्क जताया है
बंदी में
बड़प्पन बच्चों ने दिखाया है...!
