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Nalanda Satish

Abstract

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Nalanda Satish

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अब जागो तुम

अब जागो तुम

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चांद ने अपनी पंखुड़ी खोली

चांदनी रात मस्ती में सोयी

बीती रात कमल दल फूले

भंवरो ने बिछाए झूले


उठो भोर की किरणे नन्ही आयी

परियों के सपने साथ है लायी

उजालों के संग नाता जोड़ो

प्रेम की धारा में बहते जाओ


बरखा रानी मोती छोड़कर आयी

रातरानी दाना चुगकर सोई

हरियाली ने पंख पसारे

तितलियां लता बेली पर फिसले


क्यारियों में रंगबिरंगे फूल है खिले

मंद मंद पवन के झोंके से पलके हिले

केसरिया चुनरी की महक उठी

सौंधी सौंधी खुशबू की धारा धड़क उठी


उनिंदी नींद से अब जागो तुम

तन मन को पल्लवित करलो तुम

कमल दल खिलने से प्रफुल्लित धरा हुई

नवजीवन का राग छेड़ने भोर हुई।


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