STORYMIRROR

Shakuntla Agarwal

Drama

3  

Shakuntla Agarwal

Drama

अब इंसान रोबोट हो गया है

अब इंसान रोबोट हो गया है

2 mins
345

पहले का ज़माना भी,

क्या ज़माना था ?

इंसान के पास समय का खजाना था !


गाँव में घने वृक्षों की छाया,

छाया में बैठना - बतियाना !

हाथ में हुक्का ले गुड़गुड़ाना,

चौपाल में बैठ रागनियाँ गाना,

थालियों की थापों पे मदमस्त हो जाना !


घर से लेकर बाहर तक,

राजनीती की चर्चाओँ में खो जाना !

शह्तूत की छाया में बैठ,

लड़कियों का कशीदे निकालना !


पानी की टोकनियाँ लिए,

कुओं पे इतराती जाना !

पानी ले बलखातीं आना !

दहलीज़ के बीचों - बीच,

चारपाई बिछाना !

गप्पें लगाना और मस्ताना !


फागुन की मस्ती में,

सरोबार हो जाना !

तीज़ पे पींगे बढ़ाना

सावन में नगमे गाना !


अब वो ज़माना कहीं खो गया है !

लगता है इंसान नीरस और उदास हो गया है !

अल्प सुबह चक्की की गड़गड़ाहट !

लगता था संगीतमय हो गया सब !

मुर्गे की बाँग लगाना,

और हमारा जग जगाना !


नीम की दातुन ले,

घंटों दाँत माँजना !

अब इंसान इंसान न रहकर,

पैसे कमाने की मशीन हो गया है !


समस्याओं में घिर गया है,

पहले जीने के लिए कमाता था,

अब कमाने के लिए ज़िंदा है !

आनंद - उल्लास कहीं खो गया है !


आँखों पे चश्मा,

हाथ में मोबाइल,

काँधे पे लैपटॉप,

उसके जीने का सबब हो गया है !

युवा पथभ्रष्ट हो गया है !


पश्चिमी संस्कृति में कहीं खो गया है !

मदिरापान करना कराना,

डिस्को में थिरकना - थिरकाना,

उसी में अपनी शान समझ रहा है !


खोख़ली ख़ुशी का आवरण ओढ़ रहा है !

न जानें किस अंधी दौड़ में दौड़ रहा है !

ऐसा लगता है "शकुन"

इंसान, इंसान नहीं,

रोबोट हो गया है !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama