अब इंसान रोबोट हो गया है
अब इंसान रोबोट हो गया है
पहले का ज़माना भी,
क्या ज़माना था ?
इंसान के पास समय का खजाना था !
गाँव में घने वृक्षों की छाया,
छाया में बैठना - बतियाना !
हाथ में हुक्का ले गुड़गुड़ाना,
चौपाल में बैठ रागनियाँ गाना,
थालियों की थापों पे मदमस्त हो जाना !
घर से लेकर बाहर तक,
राजनीती की चर्चाओँ में खो जाना !
शह्तूत की छाया में बैठ,
लड़कियों का कशीदे निकालना !
पानी की टोकनियाँ लिए,
कुओं पे इतराती जाना !
पानी ले बलखातीं आना !
दहलीज़ के बीचों - बीच,
चारपाई बिछाना !
गप्पें लगाना और मस्ताना !
फागुन की मस्ती में,
सरोबार हो जाना !
तीज़ पे पींगे बढ़ाना
सावन में नगमे गाना !
अब वो ज़माना कहीं खो गया है !
लगता है इंसान नीरस और उदास हो गया है !
अल्प सुबह चक्की की गड़गड़ाहट !
लगता था संगीतमय हो गया सब !
मुर्गे की बाँग लगाना,
और हमारा जग जगाना !
नीम की दातुन ले,
घंटों दाँत माँजना !
अब इंसान इंसान न रहकर,
पैसे कमाने की मशीन हो गया है !
समस्याओं में घिर गया है,
पहले जीने के लिए कमाता था,
अब कमाने के लिए ज़िंदा है !
आनंद - उल्लास कहीं खो गया है !
आँखों पे चश्मा,
हाथ में मोबाइल,
काँधे पे लैपटॉप,
उसके जीने का सबब हो गया है !
युवा पथभ्रष्ट हो गया है !
पश्चिमी संस्कृति में कहीं खो गया है !
मदिरापान करना कराना,
डिस्को में थिरकना - थिरकाना,
उसी में अपनी शान समझ रहा है !
खोख़ली ख़ुशी का आवरण ओढ़ रहा है !
न जानें किस अंधी दौड़ में दौड़ रहा है !
ऐसा लगता है "शकुन"
इंसान, इंसान नहीं,
रोबोट हो गया है !
