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Yogesh Kanava

Children

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Yogesh Kanava

Children

अब भी उठते हैं दुआओं में हाथ मेरे

अब भी उठते हैं दुआओं में हाथ मेरे

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गांव दूर 

थके कदम हैं 

बिखरे हैं सूखे पत्ते सब राहों में 

अब कैसे हम बिन आवाज चलें ।

बन गई है जिंदगी 

शेयरों के भाव सी 

पल प्रतिपल चढ़े और गिरे 

बना बना कर बालू के घरोंदे 

खूब खेल लिए हम 

अब तो कहीं कोई पक्का मकान मिले ।

प्याज के छिलके से 

प्रश्न दर प्रश्न 

इन अबूझ पहेलीयों का 

अब तो कोई जवाब मिले ।

ग़रीब की ज़ोरू 

सबकी भाभी 

और 

बेटी पर धनी को की नज़र 

ना हो ऐसा कभी

अब कहीं तो ऐसी प्रभात मिले 

हमने तो 

हर बार हाथ फैला कर 

तेरा साथ मांगा 

बदले में बस हमको 

घात प्रतिघात मिले ।

अब भी उठते हैं 

दुआओं में हाथ मेरे 

आएं कितने ही दुर्वासा 

अब चाहे जितने श्राप मिलें ।

हमको तो बस घात प्रतिघात मिले ।



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