अब और नही माँ
अब और नही माँ
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बचपन से लेकर अबतक
न जाने कितनी
तकलीफें उठायी हो तुम
न जाने कितने
सपने छोडी़ हो तुम
आखिर किसलिए माँ ?
मेरी खुशियों में अपनी
खुशी देखकर
मेरी तकलीफों को
अपना बनाकर
इतनी सहनशक्ति
आखिर कहाँ से
लायी तुम माँ ?
मेरे सपनों के खातिर
खुद की टीस छुपाकर
मुझे खुद से दूर
भेज दी तुम
इतनी शक्ति
आखिर कहाँ से
लायी तुम माँ ?
बस मेरे लिए
खुद को
भूल गयी तुम माँ
गर्व होता है तुझ पर माँ
आखिर
इतनी शक्तिशाली
इतनी सहिष्णु
इतनी प्यारी
तुम मेरी हो माँ।
पर अब और नहीं
तुम्हारी आँखों में आँसू
तुम्हारे दिल में टीस
अब और नही माँं।
मेरी माँ...।