अब ऐसा क्यों है ?
अब ऐसा क्यों है ?
आईना तो पहले
भी देखती थी
तब तो ऐसा ना था
अब ऐसा क्यों है ?
खुद को निहारना,
फिर शर्माना
हलके से मुस्कराना
उनकी यादों में खो जाना
अब अपने चेहरे में
दिखता है अक्स उनका
प्रेम है ये उनका
या मेरा पागलपन
अब उनकी नज़रों से
खुद को देखा करती हूँ
जाने कहाँ खो जाती हूँ
होकर यही, यहीं हूँ
आईना तो वही है
मैं भी वही हूँ
तब तो ऐसा ना था
या तो मैं बदल गयी हूँ
या बदल गया ये आइना
नहीं बदल गयी है ये ज़िंदगी

