आज़ादी की पथ
आज़ादी की पथ
और कितने दिन सहन करोगे ?
लज्जा और अपमान का दर्द
तुम्हारी नरम देह पर
प्रतिदिन ही नशे से चूर होकर
नगाड़े पर चोट ,मंदार पर थाप
कितने दिन सहन करोगे ?
बलात्कार की पीड़ा
प्रतिदिन जो तुम्हे सहना पड़ रहा है
चार दिवारी के भीतर भी
और बाहर भी
लोभी पुरुष
पागल कुत्तों जैसा लार टपकाते है
तुम्हारी नरम देह को देखकर .
और कितने दिन ?
रीछ जैसी नाक में रस्सी डालकर
पुरुषों के इशारे से नाचोगे
घोड़े जैसा दौड़ोगे
पीठ पर चाबुक की मार से
और कितने दिन .....?
पागल घोड़े जैसे
पीछे की पैरों से लात मारो
चमड़े की चाबुक से भी
न डरो
नाक की रस्सी भी
तोड़ दो
और पुरुषों की गुलामी का
विरोध करो .
अपने जैसों की फौज
तैयार कर
आज़ादी की पथ पर
आगे ही बढ़ते जाओ ....