आत्मबल
आत्मबल
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टूट गए थे तार सभी
फिर धीरे-धीरे जुड़ ही गए,
काली अंधियारी घोर घटा
क्षण में देखो छट ही गए !
आशा और विश्वास का साथ
कभी न टूटा है न टूटेगा,
नैया जो मेरी मझधार में है
एकदिन वो किनारा ढूंढेगा !
कुछ क्षण हम क्यों ना मलिन रहें
पर ऋतु तो बदलते रहते हैं,
पतझड़ के बाद बसंत हमेशा
सबके आँगन खिलते हैं !