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Radha Shrotriya

Abstract

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Radha Shrotriya

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आत्मा की पीड़ा

आत्मा की पीड़ा

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जब मेरी आत्मा हुई रूबरू मुझसे,

कर बैठी एक सवाल...

गुनाह क्या है मेरा ? 

जो किया है तुमने जीना मेरा दुश्वार!

क्यों बात -बात पर दम भरती हो.. आत्मा अजर है अमर है !

कितना छलनी करती हो मुझे, 

भूल जाती हो तब मेरी पीड़ा को

देती हो दुहाईयाँ हजारों बार !

अजर -अमर होने से बेहतर ,

मैं तुमसा शरीर हो जाऊँ!

और मुक्त हो जाऊँ ,

अजर -अमर के,

इस बंधन से !

थक जाती हूँ मैं भी,

इतने शरीरों से गुजर!

पर नहीं समझता कोई मेरा दर्द,

काश! कि तुम सुन समझ सको मुझे!

हतप्रभ ! अवाक सी मैं

सुन रही थी वो आवाज! 

जो बयाँ कर रही थी अपनी पीड़ा ,

शब्द न थे मेरे पास !

बोलने लगी वो ....

हर एक तन का कष्ट ,

चोटिल कर देता हैै मुझे!

छोड उसे फिर नये शरीर में प्रविष्ट होना !

सोचा मैने भी.. 

चोट तन को हो या मन को,

घायल तो आत्मा ही होती है हर बार!

निशब्द हो गई में,

न दे पाई कोई जवाब 

आप हम सब प्राणी कभी न कभी...

इस दौर से गुजरते हैं. .

हो सकता है कोई जवाब हो

आप सबके पास! 

मुझे भी मिल जाये..

मेरे सवालों के जवाब ..

और दे पाऊँ मैं भी ...

आत्मा के सवालों के जवाब!


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