आसमां को छूना चाहती हूं
आसमां को छूना चाहती हूं
दुनिया की बंदिशों से मुक्त हो आसमां की बुलंदियों को छूना चाहती हूं
न किसी से शिकवा न किसी से शिकायत करना चाहती हूं
बस खुद को खुद में खोकर पहचान बनाना चाहती हूं
अब तक अनजान थी अपने आप से खुद को अब जानना चाहती हूं
मंजिल दूर सफर भी कठिन है कदम कदम बढ़ा उसे आसान बनाना चाहती हूं
उम्मीदें लगी है मुझसे कई अब उन उम्मीदों पर खरा उतरना चाहती हूं
दूसरों को बदलने की चाह छोड़ खुद को बदलना चाहती हूं
खुद पर हंस कर दुनिया को हंसाना चाहती हूं
इस भीड़ से हटकर कुछ अलग करना चाहती हूं
दुनिया की बंदिशों से मुक्त हो आसमां की बुलंदियों को छूना चाहती हूं।