आसान नही होता
आसान नही होता
आसान नही होता एक औरत होना
लबों से मुस्काकर,फिर छिपकर रोना
बचपन से लेकर बढ़ती उम्र तक
हर पल डर कर सहम कर जीना
दुत्कार, उलाहनों को पल- पल
मुस्कान बिखेर कर सीना
करनी पड़ती है उन्हें अपनी
अधिकारों की बातें
कूद कर आग में उगलनी
पड़ती है अपनी जज्बातें
जो कूद पड़ी हक़ के आंदोलन में
उनपर हर सितम ढाया गया
मीरा सी उन्हें विषपान कराया गया
कइयों का तो नामोनिशान
ही मिटाया गया
कहकर कुल्टा, पिशाचनी का
नाम भी बखूबी दर्ज कराया गया
हाँ साहब !
आसान नही होता एक औरत होना।
चाहे हो कितनी भी पढ़ी- लिखी
फिर भी दहेज जैसे कुप्रथा में
भागीदारी बनाई जाती है
बेटी है ऐसा उसपर अभिशाप
का मुहर लगवाई जाती है
सब कुछ होने के बाद भी उससे
हर बार ही अग्निपरीक्षा दिलवायी जाती है
चेहरे पर मुस्कुराहट
बनाये रखना उसे पड़ता है
खुद बीमार पर...
दूसरों का ख्याल उसे ही रखना पड़ता है
फिर भी औरत कमजोर है
ऐसा सदियों से ही कहा जाता है
आज भी खुशियो का बखूबी
घोटा गला उसका ही जाता है
हाँ साहब !
आसान नहीं होता एक औरत होना
लबों से मुस्कुराकर फिर छिपकर रोना।