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Alok Singh

Tragedy

3  

Alok Singh

Tragedy

आरक्षण

आरक्षण

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ये आरक्षण क्या है ? 

ये आरक्षण क्यों है ?

ये सवाल है ?

या खुद एक जवाब ?

ये गरीबो के लिए अमीर होने का बूटीं है ? 

या वाकई में ये 

जरूरतमंद के लिए संजीवनी बूटीं है ?  

किसने बनाया है इस आरक्षण को ?

किसने सवारा है इस आरक्षण को ?

किसने खेली है राजनीति इसके आँगन में ?

किसने खिलाया पिलाया इसको?

किसने खर्च किये पैसें

इसकी परवरिश में ?

क्या गरीब अमीर हो पाया ?

जो ढोता था मैला सर पर 

क्या अब किसी उद्योग का मालिक है?

या जो करता था किसी के घर में मज़दूरी 

अब किसी बंगले का मालिक है?

या आरक्षण पर भाषण देने वाले 

आरक्षण के नाम पर

हम सबको लड़वाने वाले 

आरक्षण की जिनको ज्यादा ज़रूरत है

उनका खून पीकर खुद 

अमीर होते जा रहे हैं ?

किसने सोचा की ये आरक्षण हो?

क्यों सोचा की ये आरक्षण हो?

बिना आरक्षण के 

क्या कोई और विकल्प नहीं था

सामाजिक बराबरी के लिए ?

आर्थिक उत्थान के लिए आरक्षण 

ही क्यों ?

७० साल के बाद भी 

इस आरक्षण ने क्या दिया?

सायद एक द्वेष भावना ?

इंसानियत में बंटवारा ?

राजनीती के लिए एक मुद्दा?

चुनाव आने पर वोटरों को 

अपने हिसाब से मोड़ने के लिए 

एक हवा या तूफ़ान ?

ये जो आरक्षण का विरोध करते हैं 

उनको पता है क्या ?

समाज में फैली हुयी विषमता ?

क्या जानते हैं कि

उनकी सोच अभी भी 

सामाजिक बराबरी का 

दर्जा देने में संकुचा रही है ?

अभी भी जो उनके घर में आकर

सफाई करते हैं 

उनको अपने सोफे पर बैठा कर

कितनी बार साथ में बैठ कर चाय पी है?

बचे हुए खाने को देने कि जगह...

साथ में बैठ कर एक साथ 

खाना खाया है?

सिर्फ नौकरी और किताबी ज्ञान के लिए

आरक्षण का विरोध क्यों?

बराबरी करने के लिए

अगर गरीब ज़रूरत मंद 

ऊपर नहीं पहुंच प् रहे हैं 

तो दोष किसका?

बहुत बड़ा दिल है न आपका ....

फिर पकड़ो उनको हाथ....

दो उनका साथ

आने दो उनको अपने साथ

चलने दो उनको भी साथ साथ ...

पर आप ऐसा नहीं करेंगे 

क्योंकि 

आप सिर्फ पैसो और किताबी ज्ञान 

कि लड़ाई में 

उनको अपना प्रतिद्वंदी मानते हैं

असलियत जानकर भी 

खुद को अज्ञान मानते हैं

.....सोचिये 

कभी उनके जूतों में 

अपना पैर डाल कर...

और हाँ....तुम भी खुद के गलेबान में 

झाँक कर देखो

ये जो आरक्षण आरक्षण चिल्ला रहे हैं

आरक्षण के नाम पर आपको भड़का रहे हैं

कितने हितैषी हैं आपके

शायद आपको समझ में आरहा हो

आपके अपने ही आरक्षण के नाम पर 

आपका हक़ मार रहे हैं

जाति के खेल में आपको 

मोहरा बना रहे हैं

७० साल से भी जयदा समय से

आरक्षण और जाति के बंटवारे ने

हम सबको क्या दिया ?

वही बाल्मीकि जिन्होंने 

छत्रियों और मुनियों का गुणगान किया

रामायण का रचना की

गोश्वामी जी ने रामचरित मानस रच

भगवान की महिमा का बखान किया

और बड़ी शिद्दत से पढ़ते हैं 

उस नाविक की भावनाएं

बड़े चाव से उठाते हैं

सबरी की झूठे बेरों के स्वाद में

प्रभु का आशीर्वाद ...

रहने दो अब इस राजनीती के खेल से

खुद को दूर

और चलो साथ में 

बनाते हैं एक ऐसा जहाँ

जहाँ ये न आरक्षण होगा

और न जाति के नाम पर कोई भेदभाव

सब अपने होंगे

साथ रहेंगे 

सिर्फ इंसानियत का धर्म होगा

और बात भी होगी तो सिर्फ इंसानियत की

चलो ........अब साथ चलते हैं।



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