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Dr. Madhukar Rao Larokar

Abstract

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Dr. Madhukar Rao Larokar

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आंसू एक चिंतन

आंसू एक चिंतन

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गम और आंसुओं से

सराबोर यह दुनिया।

खुशी का इक पल

दूर तलक नजर नहीं आता।


दिल लगे तो किस पर

कोई मूरत बसे तो सही।

भटकने का प्रवाह है तेज

रुकने की सूरत बने तो सही।


आंसू का सैलाब दिया

नहीं किसी गैर ने।

यह तो उपहार दिया है

किसी अपने ही ने।


किया चिंतन मनन खूब

कुछ गलती थी अपनी भी।

विवश रहा अपने ही हाथों

नियंत्रण नहीं रहा जीवन भी।


दवा लगाने के नाम पर

ज़ख्म गहरा कर जाते हैं वो।

टूटे दिल को तोड़ते चलते

मिलन की राह कांटे बोते हैं वो।


किसी शायर ने कहा है

ये आंसू मेरे दिल की जुबां है।

कहता हूँ मैं आंसू की महिमा न्यारी

यह आदमी को स्नेही बनाता है।


आंखों का स्वभाव है

आंसू बहाते रहना।

पल खुशी का हो या गम का

दोस्तों की तरह साथ निभाते रहना।


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