आंखों के किनारे ठहरा एक आंसू।
आंखों के किनारे ठहरा एक आंसू।
आंखों के किनारे ठहरा एक आंसू।
छलकना चाहते थे पर कोनों में ही रूक गए वह आंसू।
मन के कितने वह करीब थे
आखिर कितने खुशनसीब थी
हमारी मेहनत रंग लाई थी।
बेटी पूरी यूनिवर्सिटी में नंबर वन पर आई थी।
विदेश की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी ने उसे स्कॉलरशिप देने को माना था।
अकेले उसे कैसे जाने दें
बस मुश्किल इस दिल को मनाना था।
विश्वास परमात्मा पर था और बेटी की मेहनत को भी तो ना गंवाना था।
उसकी प्रतिभा को भी तो सबके सामने आना था।
हैरानी हुई बहुत जबकि अब के हौसला दादा नाना ने था बढ़ाया।
हम डर रहे थे कि वो क्या कहेंगे।
लेकिन सुबह सुबह बधाई का फोन उनका ही था आया।
स्कॉलरशिप बेटी को मिली थी और उसके जाने की तैयारी हो गई थी।
उसकी भलाई सोचकर हिम्मत हमने भी अब कर ली थी।
हिम्मत करके हम उसको सिर्फ समझा रहे थे।
भले बुरे की पहचान उसे बता रहे थे।
वह खुशी-खुशी फ्लाइट में चढ़ने को तैयार हो रही थी।
भले ही हम हो रहे थे कितने भी रूआंसू।
लेकिन उस को विदा करते हुए आंखों के किनारे में ही ठहरा एक आंसू।
