आमोदिनी स्याही
आमोदिनी स्याही
हो जाती है क़लम आमोदिनी, स्याही की आगोश में जाकर
बढ़ जाती है दोनों की अहमियत, इक दूजे की सोहबत पाकर।1
मेहरबानी है इस नायाब क़लम की, जो इंसानी जज़्ब़ातों को
अमर कर देती है स्याही से मिलकर, उन्हें पन्नों पर हूबहू उतारकर।2
अहसास चाहे अमिया सी खट्टी हो, या हो शहद सी मीठी
दोनों ही सूरत में क़लम बेहद नफ़ासत से, करती है इंसाफ डटकर।3
दिली तीरगी को चीरते हुए, कर जाती है रौशन वज़ूद को हमारी
गहरी खामोशी को लफ़्ज़ों का, खूबसूरत जामा पहनाकर।4
बेहद अनोखा सा रिश्ता है, इस क़लम और इस स्याही का
दिलातीं है अस्मिता हम इंसानों को, इक दूजे में पूरी तरह समाकर।5
बन जाते हैं लोग सुर्ख़रू, इस क़लम और स्याही की बदौलत
पहुंचा देतीं है हमें यह अपनी नवाज़िशों से, सीधे जमीं से फ़लक पर।6
आमोदिनी-हर्षित, सुगंधित, प्रसिद्ध
अस्मिता-पहचान, तीरगी-अँँधकार
नफ़ासत-खूबसूरती, नवाज़िश-मेहरबानी