"आम ले गुडिया चली"
"आम ले गुडिया चली"
झाउ में भर रोज ही गुड़िया चली।
प्रातः उठकर,आम ले गुड़िया चली।।
टोकरी में आम पीले भाइयों!
गाँव के हैं वो रसीले भाइयों!
धाद देती और गलियन में चली।
प्रात उठकर ,आम ले गुड़िया चली।।
मात मेरी काम पे अब जा चुकी।
दाम पाने, आम लेकर आ चुकी।
तात का वो साथ देती है चली।
प्रात उठकर,आम ले गुड़िया चली।।
भूख - प्यासे हर गली में घूमना।
चार पैसों के लिए है जूझना।
वक्त के आगे किसी की कब चली।
प्रात उठकर,आम ले गुड़िया चली।।
आम है राजा फलों का,जान लो!
मैं चलूँ! आगे बढूँ! तुम मान लो!
प्रियजनों को बेचना सबसे भली।
प्रात उठकर ,आम ले गुड़िया चली।।
आम सारे बिक गये हैं बावली।
गुनगुनाकर आप बोली डालली।
गाँव वालों! फिर मिलेंगे, मैं चली।
प्रात उठकर,आम ले गुड़िया चली।।
नोट-झाउ(टोकरी)
धाद(आवाज देना/पुकारना