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सुरशक्ति गुप्ता

Abstract

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सुरशक्ति गुप्ता

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आलाप अन्तर्मन का

आलाप अन्तर्मन का

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झूठी बिसात पर एक नया पैमाना

छोटा मगर कारगर

दूरियों को कम करता

और नजदीकियों का पेशेवर

खाई पटती गई


शहंशाह रूकसत हो लिए

अपने कर्मो और आदर्शो

का एक नया पिटारा खोलते

और मदारी के खेल दिखाते


कभी श्मशान की दहलीज को लांधते

कभी अरमानों के बीज बोते

हर दुखती रग पर स्छ्वान बनते

खामोशियों की चीख पर

अपनी मन्द मुस्कान बिखेरते

अल्प किन्तु शून्य शिखर का

तुम्हारा शिवालय

न तुम शिवानंद बन पाए


न ही सदा के लिए सदानंद

स्वैच्छिक आधार मेरा

केवल तुम्हारा आलाप

और मेरे अन्तर्मन का प्रलाप।


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