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Dr Jogender Singh(jogi)

Romance Tragedy

4.6  

Dr Jogender Singh(jogi)

Romance Tragedy

आख़िरी विदा

आख़िरी विदा

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72


सहेज कर रखा है ,कचनार का वो फ़ूल

गिर गया था जो पल्लू में मेरे, तुम्हें देख कर शायद।


हवा भी मानो थम गयी थी ,दीदार को तेरे।

चोर नज़रों से मालती को देखते, तुझे देखा था मैंने।

अटक गयी थी मेरी नज़र, तेरी ज़ुल्फ़ों में उलझकर

और तुम ने देखा भी नहीं ,मुझे पलट कर।


मैं बैठ जाती हूँ  जाकर उस पेड़ के नीचे।

हाथ में लिये उस किताब को, जिस के पन्नो के बीच,

वो कचनार का फ़ूल रख छोड़ा है।

गिरा था जो तुझे देखकर।


मंद मंद चलती ठहरी सी हवा के साथ,

तेरे जिस्म की ख़ुशबू महसूस कर लेती हूँ।

अकेले बैठ आज भी तुझ से बातें कर लेती हूँ।


चुपचाप सुनती हूँ उस एकतरफ़ा मौन प्रेम को,

जिसे मैंने कभी बताया नहीं।

और तूने ,मुझ से कभी किया नहीं।


उस गिरे फूल के सहारे

जाने कितने क़िस्से बन गये हमारे ?

रूठने मनाने के ,लड़ाई के ,घूमने जाने के।

तेरी हर अदा को जी लेती हूँ ,बिन तेरे।

इबादत तुम, तुम ही अब ख़ुदा मेरे।


मैं बन जाती हूँ बाँसुरी तेरी धुन की,

सुन ले मन से बात मेरे मन की।

दीवानी नहीं पागल हो गयी तेरे प्यार में,

आख़िरी विदा तो दे दो ,आ कर प्रियतम।

लेटी हूँ फूलों से लदी ,तेरे इंतज़ार में।

बस तेरे इंतज़ार में।


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