आख़िर क्यूँ ?
आख़िर क्यूँ ?


दुखता हैं मन मेरा
उसके नाराज़ हो जानेमन से
आखिऱ क्यूँ
पता नहीं ?
कुछ तो रिश्ता होगा
उसका मुझसे
पर पता नहीं क्या ?
शायद कभी समझ में आएगा
बस एक उम्मीद
आस लगी रहती हैं ?
दुखता हैं मन मेरा
उसके नाराज़ हो जानेमन से
आखिऱ क्यूँ
पता नहीं ?
कुछ तो रिश्ता होगा
उसका मुझसे
पर पता नहीं क्या ?
शायद कभी समझ में आएगा
बस एक उम्मीद
आस लगी रहती हैं ?