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Mayank Kumar

Abstract

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Mayank Kumar

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आख़िर जिम्मेदार कौन ?

आख़िर जिम्मेदार कौन ?

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उमंग में चला था पाँव

उस दिशा, जहां से

वह कभी सपनों को

पंख देने आया था शहर


अपने गांव में एक गांव छोड़

कच्ची मिट्टी को साहस देकर

पक्का में पक्का होने आया था

बड़ी-बड़ी इमारतों वाली शहर में !


जो पाँव गांव से आए थे

वह फिर गांव लौट रहे थे

तालाबंदी जो हो गई थी शहर में

शहर ने उनका साथ छोड़ दिया था


वैसे भी शहर कब, किसका हुआ ?

कुछ पाँव तो लौट गए थे गांव फिर से,

उसी कच्ची मिट्टी में, कच्ची यादें लेकर

लेकिन कुछ पाँव थक हार कर

रेल की पटरियों पर सो गए थे,


हमेशा के लिए अधूरे सफ़र में ही !

शहर से कमाएं खून से सनी रोटी संग,

निकल गए थे आसमां से हिसाब करने !

अपनों के कई ख़्वाबों को छोड़कर..


किसी का भाई न अब लौटेगा,

तो किसी का न अब सुहाग

किसी का बेटा न अब लौटेगा,

तो किसी का सूरज सा पिता

सब खो गए है अबूझ दुनिया में !


आख़िर जिम्मेदार कौन ?

शहर या सरकार या फिर हम ?


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