आकाश से परे
आकाश से परे
जितना तुम्हें दिखता है,
आकाश सिर्फ उतना ही नहीं है।
आकाश तो बहुत विशाल है,
बहुत सुन्दर, विविधता से भरा,
वह कभी कहीं नहीं जाता,
हमेशा वहीं रहता है,
बस तरह-तरह के रंग दिखाता है,
कभी नीला, कभी लाल, कभी सफ़ेद
और कभी-कभार इन्द्र-धनुषी।
कभी उसपर सितारे बिखर जाते हैं,
कभी चाँद निकल आता है,
कभी सूरज चमक उठता है,
कभी बादल छा जाते हैं।
मैं सच कह रही हूँ ,
आकाश वास्तव में ऐसा ही है,
कभी दीवारों से बाहर निकलो,
कभी खुले में आओ, तो जानो ।
कि जिसे तुम पूरा आकाश समझते थे,
वह तो उसका एक छोटा सा टुकड़ा था ।
