आजकल की दुनिया
आजकल की दुनिया
हर तरफ लगी आजकल दुकान है
नहीं दिखता आजकल मकान है,
हर चीज का मोल भाव करते हैं
सब हो रहे आजकल बेईमान हैं,
किसको क्या कहें हम,
बिना पानी पिये कैसे रहे हम,
अपनो से बहुत हो गये परेशान हैं,
चिंगारी जली और बुझकर रह गई
तम के लगाते आजकल दीपदान हैं,
खिलता हुआ फूल भी मुरझा गया है
असत्य से ख़त्म हो गई मुस्कान है,
हो क्या रहा है,आजकल जग में
अंधेरा आज़कल बन रहा महान है,
पर साखी तू झुक मत,रुक मत
चलता रह बनाता रह तू निशान है।
