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PrajnaParamita Aparajita

Abstract

4.1  

PrajnaParamita Aparajita

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आज़ादी .....

आज़ादी .....

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आज कल सब को आज़ादी चाहिए,

इससे उससे और कभी उन सभी से ??

सोचा पूछूँ....की आज़ादी कौन सी वाली??

क्या आज़ादी 1947 वाली ?? 

या फिर पुराने सोच से नयी सोच की,

इस वक़्त की सोच को नये दौर में बदलने की,

कुछ पुराने नियम बदल के तोड़ने की 

या कुछ तोड़ के बदलने की!!!!!

क्या है ये आज़ादी???


वो अंग्रेजों से छूट की आज़ादी??

या जो चाहे करते जाए 

जो बदलना चाहे बदल डालें 

क्या जो आज है और कल नहीं था वो है आज़ादी???

क्या है ये आज़ादी???

वो feminism feminism करके पढ़े लिखे

नौकरी पेशों वाली आज़ादी??

या फिर अब भी पिछड़े हुए,

जहां शब्द अब भी ग़ुलाम वाली आज़ादी???


वो अत्याचार अत्याचार चिल्लाते

सब साजो सामान के साथ रहने वाली आज़ादी?

या आज भी वो पढ़ाई के हक़ बिना खिड़की के

पीछे से झांकती उन आँखों की नमी वाली आज़ादी???

क्या होती है ये आज़ादी जो सबको चाहिये ?

क्या आज़ादी दूसरे कोने वालों के जैसे बन जाना होता है 

या फिर हर दायरे को एक खूबसूरत पहचान देना??

कुछ भी हो अपनी संस्कृति से जुड़े रह के

बदलना क्या आज़ादी नहीं??

कुछ सोच और कुछ पाबंदी भले ही पसंद ना हो ,

पर क्या वो कामयाबी को रोकती है??

क्या है ये आज़ादी ???


कामयाबी और पहचान के साथ

अपने जड़ो से जुड़े रहना....क्या ये आज़ादी नहीं?

ये फिर सब छोड़ कामयाब बनना और

अपने हो जड़ो से सवाल करना आज़ादी है??

मुझे लगता है..

जड़ से जुड़े रहे तो शायद दायरा कम हो

पर खिल खिला के बढ़ेंगे ज़रूर 

जड़ नहीं तो कुछ नहीं ,

पैसा तो होगा और बस पैसा हाई होगा शायद ...

हर मिट्टी की एक लम्बी कहानी होती है,

जीवन और जीवनी होती है..

और उससे जुड़े रहे तो सही मायने में 

नाम, शोहरत और आज़ादी होगी......



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