आज ज़िद फिर चढ़ी है
आज ज़िद फिर चढ़ी है
हल्का - हल्का सा तेरी याद का नशा,
फिर चढ़ने लगा,
हल्का - हल्का सा एक जुनून,
फिर दिल में उतरने लगा।
हल्के - हल्के से हम बहके,
जब महफ़िल में,
हल्का - हल्का सा सुरूर ~रे ~रँग,
तब निखरने लगा।
तुझे याद करने की,
आज ज़िद फिर चढ़ी है,
यही पल दो पल तो मेरे,
जीने की घड़ी है।
मेरी यादों से कोई कैसे भला ?
तुझे छीनेगा .....
ये मेरे सीने में लगी,
एक सुलगती लड़ी है।
तुझे याद करने की,
आज ज़िद फिर चढ़ी है।
मैं प्यासा किनारा,
तू मेरी नदी है,
मेरी साँसों की,
तू थिरकती ज़मीं है।
बंद पलकों पे तेरी,
छवि यूँ बनी है,
कि जिधर देखता हूँ,
बस तेरी कमी है।
तुझे याद करने की,
आज ज़िद फिर चढ़ी है।।