आज यूँ ही
आज यूँ ही


आज यूँ ही
आजादी के ख़याल में
डूबने लगा,
तुम्हारे साथ
डूबता गया डूबता गया
और जब ठहराव आया तो
वहाँ बस प्रेम था
तुम्हारा
इंसानियत थी तुम्हारी
और गुलामी की महत्वाकांक्षाओं के
बुलबुले थे।
तो यूँ ही आता रहे आजादी का खयाल
बना रहे उसमे डूबने का मन
कितना बोझ है
एक आजादी के
खयाल भर न होने से।