आज का आदमी
आज का आदमी
आज का आदमी इतना मुख्तियार है,
ढूंढता दाग औरों की शख्सियत पर
ना देखता खुद कितना दागदार है।
किसी का देख दर्द ना तरस खा रहा,
देख कर अपराध दूर से वीडियो बना रहा।
खुद को समझता मुखिया जहां का,
और खुद में देखो कितना लाचार है।
है बेखबर अपने ही घर से,
दूसरों के घर में बड़ी तांक झांक है।
मुखौटा धरे मुख पर ना जाने कितने
किरदार इसके,
दूसरों के किरदार से क्यों परेशान है।
मरते हुए इंसान की सहायता ना हुई,
शो उसके दर्द का लाइव फ बी पर कर दिया।
खुद के लिए जब नौका ना बनी,
दूसरों की बेड़ी में छेद कर दिया।
दूसरों की ग़लतियों में खुद को ढक लिया,
देखो यह इंसान कितना होशियार है।
देखी मासूमियत उस पर सवाल उठ गए,
देख कर हैवानियत सब चुप कर गए।
मार ना सका आदमी खुद के अहम को,
दूसरों का नाम तो बस बदनाम है।