आज बस ऐसे ही
आज बस ऐसे ही
कभी तुम्हारा
साथ पाया था
लगा था
ये साथ महज "साथ" नहीं
अहसास है
एक दूसरे से
अनदेखी डोर से
जुड़े होने का।
सोई हुई दुनिया
के बीच
कुछ ख्वाब जी लेने का
हवाओं संग
लहराते
कुछ खास
महसूस करने का।
मगर अब
सब धुंधला सा लगता है
जैसे जिंदगी
का कोई अधूरा
मगर मिटाया हुआ
किस्सा सा,
जिसे बेधड़क
रोज की
जरूरी गैर जरूरी
जरूरतें
सब की
मशरूफियतें
जीवन की
तल्ख
हकीक़तें
आ आ कर
मिटा देती है
छोड़ते हुए
कुछ एक खुरचन
अहसासों की।
हकीक़त में
आसान नहीं
कुछ भी भुलाना
मगर फिर भी
समय ही
मजबूर करता है
सब भूल जाने
को
याद आ जाने को।
