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Hemisha Shah

Abstract

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Hemisha Shah

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आईने

आईने

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यूँ ही तो नहीं होता की

भीड़ में भी यूँ तन्हा हो जाए


ये वक़्त भी ऐसा के चलते चलते

हर मोड़ पे बदल जाए 


चलो आज आईने से

पूछते हैं हक़ीक़त 


क्या पता कोई आये

और इसे जोड़ जाए


या फिर बदलते वक़्त

जैसे उसे तोड़ जाए।


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