आहट तो थी
आहट तो थी
इन सुंदर सम्भावनावों की
विश्वास भी था इनमें
और जीवन की गतिविधियां
साक्ष्य भी हैं
इस विश्वास की।
अब अगर ये सम्भावनाएं
सच में बदल कर
सक्रिय हैं जीवन में तो
आश्चर्य कैसा
विस्मय कैसा।
मनुष्य ही तो बना है मनुष्य
और नियंत्रण में चला गया है
सम्मोहित हो
अपने अदृश्य नियंता के।
प्रक्रति है
और उसकी जीवंतता का
एक प्रमाण है मनुष्य,
उसकी प्रवृत्ति का हमसफ़र
उसकी शास्वत सुरक्षा में
अगर है तो
आश्चर्य कैसा।