आदमी
आदमी
आदमी आदमी से दूर हो रहा ऐसे।
अब नहीं आदमी लगता है आदमी जैसे।।
जीने मरने की कसम संग खाई थी जिसने।
उसने मुँह मोड़ लिया एक अजनबी जैसे।।
माना हालात ने मजबूर कर दिया उसको,
इतना खुदगर्ज़ हो गया ये आदमी कैसे?
नहीं परवाह आदमी को जब ज़माने की।
अब जमाने की नज़र में न वो पहले जैसे।।
बहुत अफसोस हुआ देख के"आज़ाद"उसे,
नहीं रोया जब उसने शव पे आदमी जैसे।।