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Ashish Kumar Trivedi

Drama

0.8  

Ashish Kumar Trivedi

Drama

जीवनसाथी

जीवनसाथी

4 mins
421


नैना इस समय अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुज़र रही थी। इस दौर में उसे किसी के सहारे की सख्त ज़रूरत थी। पर उसके आसपास उसे तसल्ली देने वाला कोई नहीं था 

पिछले कई दिनों से उसकी तबीयत ठीक नहीं चल रही थी। पर काम की व्यस्तता के कारण वह सही तरह से इलाज नहीं करा रही थी। पर एक दिन जब उसने अपने वक्ष पर एक गिल्टी महसूस की तो उसे मामले की गंभीरता समझ आई। 

डॉक्टरों की जाँच के बाद उसे पता चला कि वह ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित है। उसकी ज़िंदगी रेत की मानिंद हाथों से फिसलती जा रही है।

वह किसी के कंधे पर सर रख कर जी भर कर रोना चाहती थी। चाहती थी कि जब वह रोए तो कोई उसकी पीठ पर हाथ फेर कर ढांढस बंधाए। लेकिन वह एकदम तन्हा थी।

नैना को आदित्य की याद आई। आदित्य उससे प्यार करता था। उसके साथ शादी करना चाहता था। पर नैना पर उस समय अपने परिवार की ज़िम्मेदारियां थीं। इसलिए वह अपना मन नहीं बना पा रही थी। 

आदित्य ने उसे सलाह दी थी कि वह हाँ कर दे। दोनों मिलकर कर ज़िम्मेदारियां बांट लेंगे। लेकिन उस समय नैना की माँ नहीं चाहती थी कि यह रिश्ता हो। उन्हें डर था कि कहीं शादी के बाद नैना अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति लापरवाह ना हो जाए। उन्हें नैना से छोटी अपनी दो बेटियों के भविष्य की चिंता सता रही थी। 

नैना अपनी माँ के विरुद्ध नहीं जा सकी। उसने आदित्य को शादी के लिए मना कर दिया। तब आदित्य ने उसे चेताया था।

"नैना तुम गलती कर रही हो। कल सब अपनी ज़िंदगी में व्यस्त हो जाएंगे। तब तुम्हारा साथ देने वाला कोई नहीं होगा।"

आदित्य की बात सही निकली। दोनों बहनें अपने काम और घर में व्यस्त हो गईं। उसकी माँ भी सबसे छोटी बहन के पास अमेरिका रहने चली गईं। वह अकेली रह गई।

एक बार उसने सोंचा कि वह अपनी माँ को अपनी बीमारी के बारे में बता दे। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। जबसे उसकी माँ अमेरिका गई थीं उन्होंने जैसे उसके बारे में जैसे सोंचना ही छोड़ दिया था।‌ बस कभी कभार फोन पर बातचीत कर लेती थीं। पर कभी भी उन्होंने यह नहीं कहा कि तुम अकेली हो। मैं तुम्हारे पास आ जाती हूँ। 

नैना अपनी बीमारी और अकेलेपन से लड़ रही थी। अपने अकेलेपन में उसे आदित्य की याद आती थी। कभी कभी वह सोंचती थी कि काश उस समय उसने आदित्य की बात मान ली होती। पर इस तरह अफसोस करने से कुछ हासिल नहीं होना था।

इस कठिन समय में केवल उसकी सहेली बरखा ही उसके साथ थी। वह उसकी पुरानी सहेली थी। उसने ‌भी नैना को आदित्य से शादी करने के लिए समझाया था। दोनों की शादी ना हो पाने पर वह दुखी भी हुई थी। 

बरखा पूरी कोशिश करती थी कि नैना का अकेलापन दूर कर सके। पर वह जानती थी कि नैना को एक जीवनसाथी की आवश्यकता है। लेकिन वह अपनी क्षमता के अनुसार उसका साथ देती थी।

बरखा अपने एक रिश्तेदार की शादी में शरीक होने के लिए गई थी। नैना को उसके लौटने की प्रतीक्षा थी। 

नैना गुमसुम सी बैठी थी। तभी दरवाज़े की घंटी बजी। नैना ने दरवाज़ा खोला तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। कुछ देर तक अपलक देखने के बाद वह दरवाज़े पर खड़े आदित्य के सीने से लग गई। 

कुछ पलों तक नैना आंसू बहाती रही। आदित्य उसके सर पर हाथ फेरता रहा। कुछ संभलने के बाद नैना ने आदित्य को अंदर बैठाया। उसके चेहरे पर आश्चर्य के साथ सवाल झलक रहा था। आदित्य ने उसे अपने पास बैठाते हुए कहा।

"मुझे माफ़ कर दो। मैं तुम्हें छोड़ कर चला गया था। मैंने दोबारा मुड़ कर भी नहीं देखा। तुम इतना कुछ अकेले सह रही थीं।"

"तुम खुद को दोष क्यों देते हो ? तुम मेरे ‌लिए बैठे तो ना रहते। पर तुम मेरी तकलीफ़ के बारे में कैसे जानते हो ?"

आदित्य ने बताया कि बरखा जिस शादी में गई थी वहाँ वह भी था। जब उसने बरखा से उसके बारे में पूछा तो उसने सब बता दिया। 

"नैना अब मैं तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगा। तुम्हारे साथ रहूँगा।"

"पर तुम्हारी पत्नी ऐतराज़ नहीं करेगी ?"

"नहीं, क्योंकी मैंने किसी के साथ शादी नहीं की। हमारे फेरे नहीं हुए पर तुम ही मेरी जीवनसाथी हो।"

नैना कुछ पलों तक उसकी ओर देखती रही। फिर उसके सीने से लग गई।


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