लव गाइड
लव गाइड
हैलो जी..हमारा नाम है, चन्द्र प्रकाश मोहन..और हमें सब प्यार से गुड्डू बुलाते हैं। वो क्या हुआ ना, बचपन में एक गुड्डे से हमें इतना लगाव था कि हम खाते-पीते, सोते, नहाते उसे अपने पास रखते, तो हमारी प्यारी दादी मॉं ने हमारा नामकरण गुड्डू के नाम से कर दिया, बस तब से हमें सब प्यार से गुड्डू बुलाते हैं।
कहने को तो हम बी.ए. फर्स्ट डिवीजन पास हैं, पर हमें कभी नौकरी करने में कौनो लगाव नहीं रहा। बचपन से पापा को गाइड का काम करते हुए ही देखा, और इसकी वजह से ना जाने हमें कितनी जगह घूमने का मौका भी मिला। वो पापा का जोश में टूरिस्टों को विभिन्न जगह दिखाना, अपने देश की संस्कृति से रुबरु कराना, कभी उन्हें अपनी भाषा में समझाना तो कभी उनकी भाषा को दिल से अपनाना।
हमने तो बचपन में ही ठान लिया था कि हम फ्यूचर में गाइड ही बनेंगे, तो बस बड़े होते ही कर दिया एेलान-
"गुड्डू बनेगा फेमस गाइड।"
हॉं, शुरुआत में हमारी और हमारे परिवार के लोगों के बीच थोड़ी सी नोंक- झोंक हुई, पर फिर बाद में हमारी जिद के आगे सबने अपने घुटने टेक दिये। वैसे तो हम बचपन में काफी कुछ सीख चुके थे, पर फिर भी हमने पापा से बखूबी प्रशिक्षण लिया। हमारी फैमिली चाहती थी कि हम उनके साथ शहर में रहे, पर हमारा दिल तो पहाड़ों की ऊँचाईयों को छूने का था। तो निकल पड़े एक नये सफर पर। एेसा नहीं है कि हमें अपना शहर पंसद नहीं पर पहाड़ों को तस्वीर से निकाल अपनी आँखों में बसाना चाहते थे। पहाड़ों की ठंडी-ठडी हवा को अपनी सॉंसों में महसूस करना चाहते थे। पहाड़ों की घुमावदार सड़कों से गुजरकर अपनी जिंदगी को पटरी पर लाना चाहते थे। बर्फ के गोलों से लेकर सर्दी की गरम चाय का अनुभव लेना चाहते थे। सबसे पहले हमने खुद से सारी जगह घूमीं, आसपास के लोगों से जानकारी ली, और खूब सारी रिसर्च की, वो क्या है ना हमें सिर्फ गाइड तो बनना नहीं था, हमें तो " दा फेमस गुड्डू गाइड।" बनना था।
तकरीबन तीन-चार साल हमें लग गये अपनी मंजिल हासिल करने में। हम इधर पहाड़ों के फेमस गाइड बन चुके थे। उधर हमारे परिवार वाले हमें दूल्हा बनाने की अपनी पूरी तैयारी कर चुके थे। हमारी दुल्हनिया भी तो हमें बड़ी मुश्किल से मिली।
वो क्या है ना लड़कियॉं पहले तो घूमने के नाम से हॉं बोल देती थी पर फिर सेटल ना हो पाने के डर से उनके परिवार वाले ना बोलने में देर ना लगाते। पर हमारी दुल्हनिया "अवनी" सबसे अलग थी। उसने पहली मुलाकात में ना सिर्फ रिश्ते के लिए हॉं बोली, बल्कि हमारे सपने को अपने दिल की पोटरी में बॉंध, हमारे साथ एक महीने बाद सात फेरे भी लिये। जब विदाई का समय आया, तो अवनी फूट-फूट के रोने लगी, हम भी मजाक में चुपके से कान में बोल दिये, "ज्यादा रोई तो यहीं ही छोड़ जायेंगे। फिर घर पर बैठे अपनी खिड़की से कल्पनीय पहाड़ों को ताकती रहना।"
और वो एकदम से शांत हो गयी। शायद वो हैरान थी कि हमें उसके पहाड़ों के प्रति लगाव के बारे में कैसे पता चला। अब आप लोग खुद ही सोचिए, जिस लड़की के कमरे में चादर से लेकर तस्वीर में पहाड़ ही पहाड़ हो, क्या उसे पहाड़ों से लगाव ना होगा ? हमें पहले तो बड़ा बुरा लगा कि हमारी खूबसूरत शक्ल की जगह उसका पहाड़ों के प्रति लगाव वजह बना उसकी " हॉं " का, पर फिर हमने अपने दिल को बहला लिया, समय के बदलने का इंतजार कर कि कभी ना कभी तो अवनी के दिल में हम अपनी जगह बना ही लेंगे।
शादी को हुए एक हफ्ता बीत चुका था, सारी रस्में भी पूरी हो चुकी थी और सारे रिश्तेदारों की फरमाइशें भी। परिवार के सभी लोगों का प्रेम भरा आशीर्वाद लेकर हम अपनी दुल्हनिया को लेकर पहाड़ों की नगरी में जा पहुँचे। जैसे-जैसे पहाड़ नजदीक आ रहे थे, अवनी का सुंदर सा मुखड़ा चमकता जा रहा था, उसके चेहरे पर भी वही रौनक थी जो कभी सालों पहले हमारे चेहरे को रोशन कर गयी थी।
हम दोनों का पहाड़ों के प्रति प्रेम ही, हमारे रिश्ते की डोर बना था..हॉं, बस आपसी प्रेम की कमी खल
रही थी। शादी के शुरूआती दिन थे तो हम दोनों शाम को पहाड़ों के टेढ़ी-मेढ़ी सड़कों पर सैर करने निकल पड़ते, वैसे हम दोनों के दिल में हनीमून की ख्वाहिश कहीं ना कहीं दबी हुई थी, पर किसी भी हिम्मत नहीं हुई उस ख्वाहिश को हकीकत में तब्दील करने की, खुद से पहल करने की।
मैं हमेशा की तरह सुबह के छह बजे घर से निकल पड़ता और शाम को देर से घर पहुँचता। वो अपने हाथों से बनाया हुआ स्वादिष्ट खाना तैयार रखती, थोड़ी बहुत बातचीत होती और फिर दोनों सो जाते। हम दोनों कहीं ना कहीं पहाड़ों की उन चोटियों की तरह थे, जिनका साथ रहकर भी मिलन नहीं हो पाता ।
हॉं, जानता हूँ..आप लोग सोच रहे हैं कि कहानी का शीर्षक रखा है "प्यार का पाठ" और खुद की लाइफ में तनिक भी लव नहीं, तो जनाब हम बता दें, आप सही सोच रहे हैं, हम किसी को प्यार का लेसन दे ही नहीं सकते, वो तो भगवान जी की हमारी फीकी जिंदगी पर दया आई और उन्होंने अपने फरिश्ते के रुप में भेजा एक कपल, एक एेसा कपल जिसे हमने तकरीबन पॉंच दिन में शिमला घुमाया।
मॉल मार्ग से लेकर जाखू तक, पॉंच दिन पर हम इसलिए जोर दे रहे है क्योंकि ये पहली बार था कि हमने खुद पहली बार पूरे शिमला को पॉंच दिन में घूमा। इन पॉंच दिनों में हमें मिले प्यार के खूब सारे लेसन।
ये पहला लव कपल थो, जो सच में प्यार की मिसाल था। पहले दिन ही मैडम ने थोड़ा ज्यादा समय लगा दिया, बात है जाखू मन्दिर की। हमने थोड़ी सी हिमाकत की, और बोले सर से, " सर, मैडम को बोलिए ना, ज्यादा टाइम लग रहा।"
जवाब था, "देखो भई हम है रिटायर्ड सोल्जर, हम दोनों ने अपनी पूरी जिंदगी चिट्ठियों में बिता दी, एक तरफ हम बार्डर पर देश की रक्षा कर रहे होते वही दूसरी तरफ हमारी मैडम हर दिन मजबूती से परिवार का भार संभालती, बच्चों की परवरिश अच्छे से करती, घर को संभालती। पूरी जिंदगी में इसने मुझसे कुछ नहीं मॉंगा, अब जाकर इसने घूमने की इच्छा जाहिर की है तो बस वही पूर्ण कर रहा हूँ।"
अजीब है ना। कहॉं मैं और अवनी, साथ रहते हुए भी दिल की बात नहीं कर पाते और इन दोनों ने चिट्ठियों में अपनी जिंदगी की छोटी से छोटी बात भी शेयर की। मैनें भी फैसला किया, घर से निकलने से पहले चिट्ठी में दिल की बात लिखी और अवनी के तकिये के सिरहाने रख आया और निकल पड़ा इस प्यारे कपल को शिमला की वादियों में घूमाने।
दूसरे दिन हम निकले पब्बर वैली के लिए, जब मैडम और सर को बर्फ के गोलों से खेलते हुए देखा, तो दिल किया अवनी को कॉल कर घर से यहॉं बुलाऊँ और बर्फ की एक फाइट कर ही लूँ। जब घूमते-घूमते थक गये तो मैडम ने खाने की इच्छा जाहिर की। क्योंकि आज अवनी ने टिफिन पैक नहीं किया तो हम भी रेस्टोरेंट में खाना खाने बैठ गये, वहॉं तो गजब ही हो गया, मैडम, सर को और सर, मैडम को अपने हाथों से खाना खिलाने लगे।
वाह, क्या प्यार भरा दृश्य था। रेस्टोरेंट के सब लोग उन दोनों को ही घूरे या निहारे जा रहे थे।
मैनें भी मौका देखकर सर से पूछ लिया, "आपको अजीब नहीं लगा, सब लोग आप दोनों को ही देख रहे थे !" जवाब था, "बरखुर्दार, हमारी मैडम की सालों से एक ख्वाहिश थी..एक थाली में खाना खाने की और यहॉं तो अंजानों की बस्ती थी, तो हमने तहे दिल से उनकी यह ख्वाहिश पूरी की।"
अब तो बस मैं उस रात का इंतजार कर रहा था कि कब मैं और अवनी एक थाली में भोजन करेंगे। शाम को थक हारते हुए घर पहुँचा तो देखा अवनी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुान बिखर रही थी, वो मेरे करीब आयी और मेरे हाथों में एक कागज रख गयी, शायद ये मेरी चिट्ठी थी, जिस पर सिर्फ मेरे प्यार भरे अक्षर नहीं थे, उसके आँसूओं से बिखरी स्याही भी थी। ये पॉंच दिन कब गुजरे पता ही नहीं चला, आखिरी दिन कुछ एेसा हुआ, जो हमारी जिंदगी को बदल कर रख गया। शाम का वक्त था, और हमारी आखिरी डेस्टीनेशन जगह रही "क्राइष्ट चर्च"
जहॉं शायद दोनों एक-दूसरे के लिए विश मॉंग रहे थे, मेरा आखिरी सवाल जो मैनें सर से पूछा-
"आप दोनों के नामों का कोई मतलब या मीनिंग नहीं, जब कोई कुछ कहता है तो बुरा नहीं लगता ?"
जवाब था, "हॉं...हम दोनों के नाम बिना मतलब ही सही, पर हमारी जिंदगी मकसद भरी रही, हम दोनों ने अपनी पूरी जिंदगी एक-दूसरे के साथ से, प्यार से, खूबसूरती से बिता दी। "
सच ही तो कहा था सर ने, बार्डर पर देश की रक्षा करते हुए, मैडम ने इधर घर को संभालते हुए जिंदगी बिता दी पर एक पल के लिए भी प्यार की कमी नहीं होने दी।
प्यार नाम का जादू ही तो दूरियों को भी छूमंतर किया जा सकता है। बस, इस प्यारे कपल का आशिर्वाद लिया और निकल पड़ा, घर की तरफ। घर पहुँचा तो देखा, अवनी ने घर को दीवाली के पर्व की तरह सजा रखा था। स्वादिष्ट पकवानों की सुंगध से घर महक रहा था। हमारे कमरे को पहाड़ों की तस्वीर से सजा रखा था। शायद, इन तीन-चार दिनों में हुए किस्सों ने उसको हमारा प्यार महसूस करा दिया था। हमने भी देरी ना करते हुए कर डाला प्रपोज- "बोलो, बनोगी हमारी जिंदगी की लव गाइड ?"