सेवा
सेवा
बैंक की घड़ी ने ढाई बजे ठीक घंटी बजायी और सारे कर्मचारी बैंक की प्रतिदिन बंद होने वाली कैशबुक को बंद करने में जुट गये। कैशियर नोटों को मिलाने में व्यस्त हो गया। तकरीबन पांच मिनट बाद एक जरूरतमंद विधवा महिला बैंक आई,उसने अनुरोध किया कि उसे रूपयों की सख्त जरूरत है,उसे बेटे को भिजवाने के लिए रूपये की आवश्यकता है। कृपया उसे रूपये का भुगतान करने की कृपा करें, लेकिन बैंक के समस्त कर्मचारी उसे एक स्वर में नियम-कानून समझाने लगे। इस कार्य के दौरान फिजूल ही पन्द्रह बीस मिनट व्यतीत हो गये। वह विधवा महिला निराश होकर लौट गई। इसके उपरांत तीन बजे के बाद एक आकर्षक, फैशनेबल युवती काउंटर पर आयी। आँखों का चश्मा उतारकर उसने कर्मचारियों से आँखें मिलायी और अंग्रेजी में अनुनय करके कहा कि मुझे आज ही रूपयों की आवश्यकता है। सभी कर्मचारियों ने आपस में नजरें मिलायीं और फिर सारे कर्मचारियों ने तत्परता का परिचय दिया। कर्मचारियों ने आँखों ही आँखों में बात की।
युवती को बैठने के लिए कहा गया। बैंक के चपरासी ने बाकायदा कुर्सी को बेहतर तरीके से साफ किया अमूमन वैसे वो प्रतिदिन इन कुर्सी को कपड़े से फटका मारता था। थोड़ी देर पश्चात कैशियर नये-नये नोट छांटकर युवती को देने के लिए काउंटर से बाहर निकल आया। तो अकाउंटेट ने आगे बढ़कर उसे अपने हाथों में ले लिया। और उसे शाखा प्रबंधक के हाथों में सौंप दिया। शाखा प्रबंधक ने भी अपने हाथों से युवती को रूपये सौंपकर इस सारे उपक्रम में अपनी भूमिका भी अदा कर दी। युवती ने देरी से आने के लिए माफी मांगी और कष्ट के लिए धन्यवाद दिया। सभी कर्मचारी एक ही स्वर में कहने लगे कि ग्राहकों की सेवा करना तो हमारा धर्म है। युवती उठी कैबिन के बाहर जाने के पश्चात उसने पुनः सबका अभिवादन किया।सभी कर्मचारियों ने अपनी सीट से उठकर उसका अभिवादन स्वीकार किया। घड़ी ने पुनः घंटी बजायी, सभी कर्मचारियों ने अपने आपकों पुनः फाइलों में व्यस्त कर लिया था। ऐसा लग रहा था मानों आधा घंटा पूर्व यहाँ कुछ भी नया घटित नहीं हुआ था।