अपाहिज मन
अपाहिज मन
"दिद्दा तुम कुछ समझती क्यों नहीं समय बदल रहा है।
अब लोग पढ़ाई कर के सिर्फ नौकरी ही नहीं करते वो साथ में अपनें मन को खुशी देने वाला काम भी शौकिया करते हैं। अगर बहू कुछ अपनी मर्जी का काम नौकरी के बाद के समय में करना चाहती है तो उसे करने दो न। तुम्हें याद है न कालेज के समय में तुम्हे नाटक में भाग लेने का कितना शौक था जो बाद में परिस्थितिवश सब खत्म हो गया।
तब अगर तुम्हारे साथ वह हादसा न हुआ होता और साथ ही आगे मौका मिला होता तो आज आप न जाने किस मुकाम पर होती। आप तो बस बहू का साथ दो जिससे एक और यामिनी न तैयार हो। उसकी प्रतिभा को उम्मीदों की सीढ़ी चढ़ कर बुलंदियों का आकाश छूने दो।" उचित सलाह दे कर मेंरे अपाहिज मन को सही बैसाखी का सहारा पकङाने के लिए छोटी को हृदय से धन्यवाद देते हुये मैंने बहू से कहा "जा तू भर ले अपनी उड़ान बस गिद्धों से सावधान रहना।"