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चर्चा: मास्टर&मार्गारीटा 27

चर्चा: मास्टर&मार्गारीटा 27

15 mins
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अध्याय – 27

फ्लैट नं. 50 का अंत


अब हम मॉस्को में घटित हो रहे प्रसंगों की ओर लौटते हैं और यह वापसी भी बड़ी सहजता से होती है...। पिछले अध्याय के अंतिम वाक्य से यह अध्याय आरम्भ होता है। अब हम समझ गए हैं कि बुल्गाकोव ने हमेशा यह बताने की कोशिश की है कि दोनों काल खण्ड एक ही हैं, उन्हें अलग करने वाली रेखा इतनी महीन है कि वह लगभग लुप्त हो जाती है!


तो, मास्टर और मार्गारीटा अर्बात वाले मकान के तहख़ाने में वापस आ गए हैं, मार्गारीटा मास्टर के उपन्यास की अपनी सबसे प्रिय पंक्तियाँ पढ़ रही थी और जब तक मार्गारीटा अध्याय के आखिरी शब्दों “...इस तरह निसान माह की पन्द्रहवीं तिथि की सुबह का स्वागत किया जूडिया के पाँचवें न्यायाधीश पोंती पिलात ने,” तक पहुँची, सुबह हो चुकी थी।

मार्गारीटा का दिल और दिमाग बिल्कुल ठीक-ठाक थे। उसके ख़याल इधर-उधर भटक नहीं रहे थे, उसे ज़रा भी आश्चर्य नहीं हो रहा था कि रात उसने अत्यंत अद्भुत ढंग से गुज़ारी है। शैतान के नृत्योत्सव में अपनी उपस्थिति की यादें उसे परेशान नहीं कर रही थीं। वह इस बात से भी विस्मित नहीं थी कि किस आश्चर्यजनक तरीके से उसका मास्टर उसे लौटा दिया गया था; कि अँगीठी से उपन्यास निकल आया था; कि उस तहख़ाने में सब कुछ अपनी पूर्व स्थिति में था, जहाँ से चुगलखोर अलोइज़ी मोगारिच को निकाल दिया गया था। संक्षेप में वोलान्द से हुई मुलाकात का उस पर कोई मानसिक असर नहीं हुआ। सब कुछ वैसा ही था जैसा होना चाहिए था।


वह बगल वाले कमरे में गई, इस बात का इत्मीनान कर लिया कि मास्टर गहरी और शांत नींद में सोया है, अनावश्यक टेबुल लैम्प बुझा दिया और स्वयँ भी सामने की दीवार से लगे दीवान पर लेट गई, जिस पर फटी पुरानी चादर पड़ी हुई थी। एक मिनट बाद ही उसकी आँख लग गई और इस सुबह को उसने कोई सपना नहीं देखा। तहख़ाने के दोनों कमरे ख़ामोश थे, कॉन्ट्रेक्टर का छोटा सा मकान चुप था, उस बंद गली में भी सब कुछ सुनसान था।


मगर इस समय यानी शनिवार की सुबह मॉस्को के एक दफ़्तर वाली पूरी मंज़िल जाग रही थी। बड़े, सिमेंट के चौक में खुलने वाली उसकी खिड़कियाँ, जिन्हें इस समय बड़ी-बड़ी विशेषा गाड़ियाँ हल्की-हल्की बुदबुदाहट के साथ ब्रशों की सहायता से साफ कर रही थीं, पूरी रोशनी से चमक रही थी और उगते हुए सूरज की रोशनी को काट रही थी।


पूरी मंज़िल वोलान्द वाले मामले की छानबीन में व्यस्त थी। दफ़्तर के दसियों कमरों में रात भर बत्तियाँ जलती रही थीं।


असल में मामला पिछले दिन, शुक्रवार को ही प्रकाश में आ गया था, जब पूरी व्यवस्थापकों की टोली गायब हो जाने के बाद और काले जादू के उस मशहूर शो के बाद हुई ऊटपटाँग घटनाओं के फलस्वरूप वेराइटी थियेटर को बंद कर देना पड़ा था। मगर ख़ास बात यह थी कि तब से अब तक लगातार एक के बाद एक अजीबोग़रीब घटनाओं की सूचना इस निद्राहीन मंज़िल पर आती जा रही थी।


अब विशेषज्ञ इस विचित्र मामले की सभी शैतानी, सम्मोहनकारी, चोरी-बेईमानी भरी, उलझन में डालने वाली, मॉस्को के विभिन्न भागों में घटने वाली घटनाओं को एक कड़ी में पिरोने का प्रयत्न कर रहे थे।

सबसे पहला व्यक्ति, जिसे इस निद्राहीन, बिजली की रोशनी से जगमगाती मंज़िल पर बुलाया गया, वह था ध्वनिसंयोजक समिति का प्रमुख अर्कादी अपोलोनोविच सिम्प्लेयारोव। पूरी शाम अर्कादी अपोलोनोविच ने उसी मंज़िल पर गुज़ारी जहाँ जाँच-पड़ताल जारी थी। तकलीफदेह बातचीत लम्बी खिंच रही थी...अत्यंत अप्रिय थी यह बातचीत। सब कुछ सच-सच बताना पड़ा था, न केवल उस घृणित कार्यक्रम के बारे में और बॉक्स में हुए झगड़े के बारे में, बल्कि बातों-बातों में वह भी बताना पड़ा जो वाकई में ज़रूरी था; एलोखोव्स्काया मार्ग पर रहने वाली मिलित्सा अन्द्रेयेव्ना पाकोबात्का के बारे में, सरातोव वाली भतीजी के बारे में, और भी बहुत कुछ जिसे बताते हुए अर्कादी अपोलोनोविच को अवर्णनीय दुःख हो रहा था। ज़ाहिर है कि अर्कादी अपोलोनोविच ने, जो एक बुद्धिमान और सुसंस्कृत व्यक्ति था; जो उस ऊलजलूल शो का गवाह था; जो हर बात भली भाँति परख सकता था, इस शो का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया; उस रहस्यमय जादूगर का जो नकाब पहने था, और उसके दोनों साथियों का भी; उसे अच्छी तरह याद था कि उस जादूगर का नाम वोलान्द था। इन गवाहियों ने खोज को आगे बढ़ाने में काफी मदद की। अर्कादी अपोलोनोविच की गवाहियों की अन्य लोगों द्वारा बताई गई बातों से तुलना करने पर, ख़ासकर ऐसी महिलाओं की बातों से जो शो के बाद काफी परेशान हुई थीं (वह, जो बैंगनी रंग के अंतर्वस्त्रों में थी, जिसने रीम्स्की को चौंका दिया था, और, और भी अनेक औरतें), पत्रवाहक कार्पोव की कथा से जो सादोवाया के फ्लैट नं. 50 में भेजा गया था – यह बात निश्चित हो गई, कि किस जगह पर इन सब चमत्कारों के लिए दोषी व्यक्ति को खोजा जा सकता है। फ्लैट नं. 50 में भी गए, एक बार नहीं, कई बार और न केवल उसे भली भाँति देखा गया, बल्कि दीवारों को भी ठोक-ठोककर देखा गया, अँगीठी से ऊपर जाते धुएँ के पाइप तलाशे गए, गुप्त स्थान ढूँढे गए, मगर इन सबसे कोई नतीजा नहीं निकला और एक भी बार उस फ्लैट में कोई भी नहीं मिला, हालाँकि यह बात लगातार महसूस हो रही थी कि फ्लैट में कोई है ज़रूर; जबकि वे सभी व्यक्ति जो मॉस्को में आने वाले विदेशियों के बारे में जानकारी रखते थे बता रहे थे कि वोलान्द नामक कोई भी काले जादू का जादूगर मॉस्को में नहीं है और हो भी नहीं सकता। सचमुच, उसने आने पर कहीं भी अपना नाम नहीं लिखवाया था, किसी को अपना पासपोर्ट या अन्य कोई दस्तावेज़ नहीं दिखाया था; कोई अनुबंध, कोई समझौता...कुछ भी नहीं और किसी ने भी उसके बारे में कुछ भी सुना नहीं था! थियेटरों की प्रोग्राम संयोजन समिति का प्रमुख कितायेत्सेव कसम खाकर, हाथ जोड़कर कह रहा था कि गायब हो चुके स्त्योपा लिखोदेयेव ने वोलान्द के प्रोग्राम से सम्बंधित कोई भी प्रस्ताव पुष्टि के लिए उसके पास नहीं भेजा था, ना ही उस वोलान्द के आगमन के बारे में कितायेत्सेव को उसने कोई टेलिफोन ही किया था। इसलिए कितायेत्सेव को कुछ समझ में नहीं आ रहा और न ही कुछ मालूम है कि स्त्योपा वेराइटी थिएटर में ऐसे कार्यक्रम का संयोजन कैसे कर सका। जब यह बताया गया कि अर्कादी अपोलोनोविच ने अपनी आँखों से इस जादूगर का कार्यक्रम देखा है, तो कितायेत्सेव ने हाथ नचाते हुए आकाश की ओर नज़रें गडा दीं। कितायेत्सेव की पारदर्शी काँच की तरह आँखों की ओर देखने मात्र से ही यह पता चलताथा कि वह निर्दोष और साफ़ है।


प्रोखोर पेत्रोविच जो पुलिस के प्रवेश करते ही अपने सूट में वापस लौट आया था, कुछ भी न बता सका।

रीम्स्की को लेनिनग्राद में ढूँढ लिया गया, उसने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया; उसे कड़ी सुरक्षा में मॉस्को लाया गया; लिखोदेयेव भी याल्टा से हवाई जहाज़ में बैठकर मॉस्को आ गया...वारेनूखा को दो दिन ढूँढ लिया गया। अज़ाज़ेलो को दिए गए आश्वासन के बावजूद कि वह कभी झूठ नहीं बोलेगा, व्यवस्थापक ने झूठ से ही शुरुआत की। हालाँकि इसके लिए उसे अत्यंत कठोर दण्ड देना ठीक नहीं, क्योंकि अज़ाज़ेलो ने उसे टेलिफोन पर झूठ बोलने और दादागिरी करने से मना किया था और इस वक्त व्यवस्थापक टेलिफोन पर नहीं बोल रहा था। आँखें झपकाते हुए इवान सावेल्येविच ने बताया कि गुरुवार को दिन में थियेटर के अपने कमरे में अकेले बैठकर उसने खूब शराब पी, उसके बाद वह कहीं चला गया, मगर कहाँ – यह उसे याद नहीं। कहीं और भी पुरानी शराब पी, मगर कहाँ – याद नहीं। फिर कहीं गिर पड़ा, किसी आँगन के पास, मगर कहाँ – यह भी याद नहीं। मगर जब व्यवस्थापक से कहा गया कि वह अपनी इस बेवकूफी भरी ऊटपटाँग हरकत से एक महत्वपूर्ण मामले की जाँच में बाधा डाल रहा है और इसकी ज़िम्मेदारी उसी पर होगी, तो वारेनूखा रो पड़ा और थरथराते गले से कसमें खाते हुए उसने फुसफुसाते हुए कहा कि झूठ सिर्फ डर के मारे बोल रहा है, क्योंकि उसे डर है कि वोलान्द की मण्डली उससे ज़रूर बदला लेगी, जिनके हाथों में वह पहले ही पड़ चुका है, और वह विनती करता है, प्रार्थना करता है कि उसे बुलेट प्रूफ सुरक्षित कमरे में बन्द रखा जाए।

साथ ही वेराइटी के बाहर, मॉस्को के अन्य स्थानों पर घटित घटनाओं की भी जाँच करनी थी। ‘सुन्दर सागर’ वाली घटना के पीछे क्या कारण था, जिसे दर्शक कमिटी के सभी कर्मचारी गा रहे थे, यह भी समझाना था (यह बता दूँ कि प्रोफेसर स्त्राविन्स्की ने कोई इंजेक्शन देकर दो घण्टों के अन्दर उन्हें ठीक कर दिया था), उन व्यक्तियों का पता लगाना ज़रूरी था जो पैसों के नाम पर दूसरे व्यक्तियों या संस्थाओं को शैतान जाने क्या दे रहे थे, और साथ ही उनका भी जिन्हें इन हरकतों से नुक्सान उठाना पड़ा था।


इन सभी घटनाओं में सबसे अधिक अप्रिय, लफ़ड़े वाली और न सुलझ सकने वाली घटना थी, ग्रिबोयेदोव हॉल में कॉफ़िन में रखे साहित्यिक बेर्लिओज़ के मृत शरीर से उसके सिर का चुरा लिया जाना। जो दिन-दहाड़े हुई थी।

बारह व्यक्तियों की जाँच समिति पूरे मॉस्को में बिखरे इस कठिन मामले की विभिन्न कड़ियाँ समेटने में लगी थी।

एक जाँचकर्ता प्रोफेसर स्त्राविन्स्की के अस्पताल में पहुँच गया और सबसे पहले उसने उन लोगों की लिस्ट दिखाने के लिए कहा, जो पिछले तीन दिनों में अस्पताल में लाए गए थे । इस तरह निकानोर इवानोविच बासोय और मुसीबत का मारा सूत्रधार, जिसका सिर उखाड़ दिया गया था, नज़र आए। उनकी तरफ, न जाने क्यों, काफी कम ध्यान दिया गया। अब यह साबित करना आसान था कि ये दोनों एक ही गुट का शिकार हुए थे, जिसका नेतृत्व वह रहस्यमय जादूगर कर रहा था। मगर इवान निकोलायेविच बेज़्दोम्नी ने जाँचकर्ता को काफ़ी आकर्षित किया।

इवान अब अपने आसपास घटित हो रही घटनाओं से उदासीन था, मगर फिर भी उसने बेर्लिओज़ की मृत्यु का सही-सही विवरण दिया।


हाँ, सुबूत काफ़ी इकट्ठे हो चुके थे, यह भी ज्ञात हो चुका था कि किसे पकड़ना है और कहाँ पकड़ना है। मगर बात यह थी कि पकड़ना सम्भव ही नहीं हो पा रहा था। उस त्रिवार शापित फ्लैट नं. 50 में, अवश्य ही, हम फिर से दुहराएँगे, कोई मौजूद था। कभी-कभी इस फ्लैट से टेलिफोन की घंटियों का भर्राई या चिरचिरी आवाज़ में जवाब दिया जाता, कभी-कभी फ्लैट की खिड़की खोली जाती; कमाल की बात यह थी कि उससे हार्मोनियम की आवाज़ सुनाई देती। मगर फिर भी, हर बार, जब उसमें कोई जाता, तो वहाँ किसी को न पाता; और वहाँ कई बार, दिन के अलग-अलग वक़्त पर गए। फ्लैट में जाली लेकर गए, सभी कोनों के जाँच की गई। यह फ्लैट काफी समय से सन्देहास्पद बना हुआ था। न केवल उस रास्ते पर नज़र रखी जा रही थी, जो गली के नुक्कड़ से आँगन तक आता था, बल्कि गुप्त दरवाज़े की भी निगरानी की जा रही थी। इतना ही नहीं, छत पर निकलने वाली धुएँ की चिमनियों के पास भी पहरा लगा दिया गया था। हाँ, फ्लैट नं. 50 शरारतें किए जा रहा था, मगर उसके सइस तरह यह काम लम्बा खिंचता गया, शुक्रवार से शनिवार आधी रात तक, जब सामंत मायकेल अपनी शाम की पार्टियों वाली पोषाक पहने, चमकीले जूते डाले मेहमान बनकर फ्लैट नं. 50 में जा रहा था। सुनाई पड़ रहा था कि सामंत को किस तरह फ्लैट के अन्दर लिया गया। इसके ठीक दस मिनट बाद, बगैर घण्टी बजाए, फ्लैट को छान मारा गया, मगर उसमें मेज़बान मालिक मिला ही नहीं। आश्चर्य की बात तो यह थी कि सामंत मायकेल का भी वहाँ कोई नामोनिशान नहीं मिला।

अन्नूश्का को उस समय गिरफ़्तार किया गया जब वह अर्बात के एक डिपार्टमेंटल स्टोर में कैशियर को दस डॉलर्स का नोट थमा रही थी। अन्नूश्का की कहानी – सादोवाया बिल्डिंग की खिड़की से उड़कर बाहर जाते हुए लोगों के बारे में और घोड़े की नाल के बारे में, जिसे अन्नूश्का के अनुसार उसने इसलिए उठाया था कि उसे पुलिस में जमा कर सके, बड़े ध्यान से सुना गया।

 “क्या घोड़े की नाल सचमुच सोने की थी और उस पर हीरे जड़े हुए थे?” अन्नूश्का से पूछा गया “जैसे कि मैं हीरे-वीरे नहीं पहचानती,” अन्नूश्का ने जवाब दिया।

 “मगर जैसे आपने बताया, उसने आपको दस रूबल्स के नोट दिए थे। ”

 “जैसे कि मैं दस रूबल के नोट नहीं जानती!” अन्नूश्का ने कहा।

 “मगर वे डॉलर्स में कब बदल गए?”

 “मैं कुछ नहीं जानती, कहाँ के डॉलर्स, कैसे डॉलर्स, मैंने कोई डॉलर-वॉलर नहीं देखे,” अन्नूश्का ने उत्तेजित होकर कहा, “हम अपने अधिकार का उपयोग कर रहे थे! हमें इनाम दिया गया , हम कपड़ा ख़रीदने गए...” और उसने कहा कि वह हाउसिंग सोसाइटी के किसी भी काम के लिए ज़िम्मेदार नहीं है, जिसने पाँचवी मंज़िल पर शैतानों को पाल रखा है, जिससे जीना मुश्किल हो रहा है।

अब जाँचकर्ता ने पेन के इशारे से उसे चुप रहने को कहा, क्योंकि वह सबको बहुत तंग कर चुकी थी। उसे हरे कागज़ पर बिल्डिंग से बाहर जाने का अनुमति-पत्र लिखकर दे दिया। इसके बाद सबको राहत देती हुई अन्नूश्का उस बिल्डिंग से गायब हो गई।

इसके बाद अन्य अनेक लोगों से पूछताछ की गई, जिनमें निकोलाय इवानोविच भी था, जो अपनी ईर्ष्यालु बीवी की बेवकूफी के कारण पकड़ा गया, जिसने सुबह पुलिस में रिपोर्ट लिखाई थी, कि उसका पति गायब हो गया है। निकोलाय इवानोविच के बयान से समिति को कोई आश्चर्य नहीं हुआ, जब उसने शैतान के नृत्योत्सव में गुज़ारी गई रात के बारे में फूहड़-सा सर्टिफिकेट पेश किया। अपनी कहानियों में कि वह कैसे हवा में उड़ते हुए अपनी पीठ पर मार्गारीटा निकोलायेव्ना की नग्न नौकरानी को न जाने कहाँ, सब शैतानों के साथ नहाने के लिए नदी पर ले गया, और इससे पूर्व कैसे उसने खिड़की में नग्न मार्गारीटा निकोलायेव्ना को देखा – निकोलाय इवानोविच सत्य से कुछ दूर हट गया था।


लगभग चार बजे, गर्मियों की उस दोपहर में, सरकारी यूनिफ़ॉर्म पहने एक बहुत बड़ा आदमियों का दल तीन गाड़ियों से सादोवाया की बिल्डिंग नं। 302 के नज़दीक उतरा। यह बड़ा दल दो छोटे दलों में बँट गया, जिनमें से एक, गली के मोड़ से आँगन में होते हुए छठे प्रवेश द्वार में घुसा; और दूसरे ने अक्सर बन्द रहने वाला छोटा दरवाज़ा खोला, जो चोर दरवाज़े तक ले जाता था। ये दोनों दल अलग-अलग सीढ़ियों से फ्लैट नं. 50 की ओर चले।

 अब तक सीढ़ियाँ चढ़ने वाले तीसरी मंज़िल पर पहुँच चुके थे। वहाँ पानी का नल ठीक करने वाले दो प्लम्बर बिल्डिंग गरम करने वाले पाइप की मरम्मत कर रहे थे। आने वालों ने अर्थपूर्ण नज़रों से पाइप ठीक  “सब घर पर ही हैं,” उनमें से एक नल ठीक करने वाला बोला, और हथौड़े से पाइप पर खट्खट् करता रहा। तब आने वालों में से एक ने अपने कोट की जेब से काला रिवॉल्वर निकाला और दूसरे ने, जो उसके निकट ही था, निकाली ‘मास्टर की’। फ्लैट नं. 50 में प्रवेश करने वाले आवश्यकतानुसार हथियारों से लैस थे। उनमें से दो की जेबों में थीं आसानी से मुड़ने वाली महीन, रेशमी जालियाँ, और एक के पास था – बड़ा-सा चिमटा, तो दूसरा लिए था – मास्क और क्लोरोफॉर्म की नन्ही-नन्ही बोतलें।

एक ही सेकण्ड में फ्लैट नं. 50 का दरवाज़ा खुल गया और सभी आए हुए लोग प्रवेश-कक्ष में घुस गए। रसोई के धम्म से बन्द हुए दरवाज़े ने यह साबित कर दिया कि दूसरा गुट भी ठीक समय पर चोर-दरवाज़े से फ्लैट के अन्दर दाखिल हो चुका हइस समय शत-प्रतिशत नहीं तो कुछ अंशों में सफलता मिलती दिखाई दी। फौरन सभी कमरों में ये लोग बिखर गए, और कहीं भी, किसी को भी न पा सके, मगर डाइनिंग हॉल में अभी-अभी छोड़े नाश्ते के चिह्न ज़रूर मिले; और ड्राइंगरूम में फायर प्लेस के ऊपर की स्लैब पर क्रिस्टल की सुराही की बगल में विशालकाय काला बिल्ला बैठा हुआ मिला। उसने अपने पंजों में स्टोव पकड़ रखा थबिल्ले और इस टीम के सदस्यों के बीच भयानक गोलीबारी होती है, मगर आश्चर्य की बात यह थी कोई भी घायल नहीं हो रहा था।

सूरज डूबने वाला है

बिल्ले को पकड़ने की एक और कोशिश की गई। एक फँदा फेंका गया जो एक मोमबत्ती में जाकर फँसा, झुम्बर नीचे आ गया। उसकी झनझनाहट ने पूरी बिल्डिंग को झकझोर कर रख दिया, मगर इससे कोई लाभ नहीं हुआ। वहाँ मौजूद लोगों पर काँच के टुकड़ों की बौछार हुई, और बिल्ला हवा में उड़कर ऊपर, अँगीठी के ऊपर जड़े शीशे की सुनहरी फ्रेम के ऊपरी हिस्से पर जा बैठा। वह कहीं भी जाने को तैयार नहीं था और, उल्टे आराम से बैठे-बैठे, एक और भाषण देने लगा : “मैं ज़रा भी समझ नहीं पा रहा हूँ...” वह ऊपर से बोला, “कि मेरे साथ हो रहे इस ख़तरनाक व्यवहार का कारण क्या तभी इस भाषण के बीच ही में टपक पड़ी एक भारी, निचले सुर वाली आवाज़, “फ्लैट में यह क्या हो रहा है? मुझे आराम करने में परेशानी हो रही है। ”एक और अप्रिय नुकीली आवाज़ ने कहा, “यह ज़रूर बेगेमोत ही है, उसे शैतान ले जाए!”


तीसरी गरजदार आवाज़ बोली, “महाशय! शनिवार का सूरज डूब रहा है। हमारे जाने का समय हो गया। ”

 “माफ़ करना, मैं आपसे और बातें नहीं कर सकूँगा,” बिल्ले ने आईने के ऊपर से कहा, “हमें जाना है। ” उसने अपनी पिस्तौल फेंककर खिड़की के दोनों शीशे तोड़ दिए। फिर उसने तेल नीचे गिरा दिया, और यह तेल अपने आप भभक उठा। उसकी लपट छत तक जाने लगीसब कुछ बड़े अजीब तरीके से जल रहा था, अत्यंत द्रुत गति से और पूरी ताकत से, जैसा कभी तेल के साथ भी नहीं होता। देखते-देखते वॉल पेपर जल गया, फटा हुआ परदा जल गया जो फर्श पर पड़ा था और टूटी हुई खिड़कियों की चौखटें पिघलने लगीं। बिल्ला उछल रहा था, म्याँऊ-म्याऊँ कर रहा था। फिर वह आईने से उछलकर खिड़की की सिल पर गया और अपने स्टोव के साथ उसके पीछे छिप गया। बाहर गोलियों की आवाज़ें गूँज उठीं। सामने, जवाहिरे की बीवी के फ्लैट की खिड़कियों के ठीक सामने, लोहे की सीढ़ी पर बैठे हुए आदमी ने बिल्ले पर गोलियाँ चलाईं, जब वह एक खिड़की से दूसरी खिड़की फाँदते हुए बिल्डिंग के पानी के पाइप की ओर जा रहा था। इस पाइप से बिल्ला छत पर यहाँ भी उसे वैसे ही, ऊपर पाइपों के निकट तैनात दल द्वारा, बिना किसी परिणाम के गोलियों से दागा गया और बिल्ला शहर को धूप में नहलाते डूबते सूरज की रोशनी में नहा गया।


फ्लैट के अन्दर मौजूद लोगों के पैरों तले इस वक़्त फर्श धू-धू कर जलने लगा, और वहाँ जहाँ नकली ज़ख़्म से आहत होकर बिल्ला गिर पड़ा था, वहाँ अब शीघ्रता से सिकुड़ता हुआ भूतपूर्व सामंत का शव दिखाई दे रहा था, पथराई आँखों और ऊपर उठी ठुड्डी के साथ। उसे खींचकर निकालना अब असम्भव हो गया था। फर्श की जलती स्लैबों पर फुदकते, हथेलियों से धुएँ में लिपटे कन्धों और सीनों को थपथपाते, ड्राइंगरूम में उपस्थित लोग अब अध्ययन-कक्ष और प्रवेश-कक्ष में भागे। वे, जो शयन-कक्ष और डाइनिंग रूम में थे, गलियाए से होते हुए भागे। वे भी भागे जो रसोईघर में थे। सभी प्रवेश-कक्ष की ओर दौड़े। ड्राइंगरूम पूरी तरह आग और धुएँ से भर चुका था। किसी ने भागते-भागते अग्निशामक दल का टेलिफोन नम्बर घुमा दिया और बोला, “सादोवाया रास्ता, तीन सौ दो और ठहरना सम्भव नहीं था। लपटें प्रवेश-कक्ष तक आने लगीं। साँस लेना मुश्किल हो चला।


जैसे ही उस जादुई फ्लैट की खिड़कियों से धुएँ के पहले बादल निकले, आँगन में लोगों की घबराई हुई चीखें सुनाई दीं:

 “आग, आग, जल रहे हैं!”


बिल्डिंग के अन्य फ्लैट्स में लोग टॆलिफोनों पर चीख रहे थे, “ सादोवाया, सादोवाया, तीन सौ दो बी!”


उस वक्त जब शहर के सभी भागों में लम्बी-लम्बी लाल गाड़ियों की दिल दहलाने वाली घंटियाँ सुनाई देने लगीं, आँगन में ठहरे लोगों ने देखा कि धुएँ के साथ-साथ पाँचवीं मंज़िल की खिड़की से पुरुषों की आकृति के तीन काले साए तैरते हुए बाहर निकले, इनके साथ एक साया नग्न महिला की आकृति का भी था।


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