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Kameshwari Karri

Romance

4.0  

Kameshwari Karri

Romance

ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा

ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा

6 mins
261


विशाल इंजीनियरिंग फोर्थ इयर में था और कैंपस सेलेक्शन में उसे विप्रो कंपनी में जॉब मिल गई थी। नौकरी पाकर वह बहुत खुश था क्योंकि बचपन से उसे लगता था कि जल्दी से पढ़ाई ख़त्म करके नौकरी कर ले ,क्योंकि स्कूल और कॉलेज हर जगह उसके दोस्त खूब मज़े करते थे पर उसे हमेशा पापा से यही सुनने को मिलता था कि पढ़ाई पर ध्यान दो जब नौकरी करोगे तब अपनी मर्ज़ी से पैसे खर्च कर लेना।

नौकरी के साथ-साथ वह दूसरे काम भी कर लेता था कि ज़्यादा पैसे मिल जाएँगे। अभी पैसे कमाकर वह बुढ़ापे को आराम से बिताना चाहता था। इस छोटे से उम्र में ही उसने एक तीन कमरों का घर भी ख़रीद लिया था। बैंक में पैसे भी जमा करने लगा। माता-पिता ने उससे शादी की बात चलाई तो वह शादी के लिए रेडी हो गया क्योंकि उसने घर गृहस्थी के लिए सारे सामान ख़रीद लिया था। बबीता उसे अच्छी लगी क्योंकि पढ़ी लिखी थी और समझदार लग रही थी। दोनों ने एक दूसरे को पसंद कर लिया और शादी हो गई। बबीता बहुत खुश थी कि इतना सुंदर और समझदार पति उसे मिला। घूम फिरकर आते ही विशाल ने ऑफिस जॉइन कर लिया। बबीता ने महसूस किया कि विशाल सिर्फ़ काम की बातें ही करता है, रोमांटिक तो बिलकुल भी नहीं है।

विशाल ऑफिस में काम कर रहा था फ़ोन पर मेसेज आया “ क्या कर रहे हैं खाना खा लिया आज जल्दी घर आ सकते हैं। “ बबीता का मेसेज मालूम नहीं अपने आप को क्या समझती है ,ख़ाली बैठा हूँ क्या ?मेसेज पढ़ा पर जवाब देना ज़रूरी न समझकर ,जवाब नहीं दिया। देर से काम ख़त्म करके घर पहुँचा ...सोचा ,अब लड़ाई होगी पर बबीता ने कुछ नहीं कहा..... “विशाल घर पर बैठे मैं बोर हो जाती हूँ इस बार लॉंग वीकेंड है कहीं घूमने चलें। “

....देखो बबीता पूरा सप्ताह मैं काम करता हूँ ,कभी छुट्टी मिले तो मुझे रेस्ट करने की इच्छा होती है , प्लीज़ मुझे बख्श दो।

 विशाल जब से शादी हुई हम कहीं नहीं गए ठीक है। सिर्फ रविवार को सोसाइटी वाले पिकनिक पर जा रहे हैं कम से कम उनके साथ तो चल सकते हैं न ...

नहीं .....मैं नहीं जा पाऊँगा तुम चाहे तो चले जाओ, मैं उनसे बात कर लेता हूँ। वैसे भी घर में रहने में तुम्हें क्या तकलीफ़ है सब कुछ तो है घर में काम भी कुछ करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। आराम से रहकर ज़िंदगी बिताना भी तुम्हें नहीं आता।

आपने मुझसे शादी क्यों की ताकि मैं एक नौकरानी के समान आपके काम करती रहूँ। घूमना नहीं फिरना तो दूर की बात, कोई दोस्त भी नहीं हैं और न सगे संबंधियों से रिश्ता मैं तो तंग आ गई हूँ।

ऐसे कैसे कह सकती हो बबीता ....अपने लिए ही तो मैं काम कर रहा हूँ। आज काम करूँगा तो कल हमारा आराम से बीतेगा। मैं नहीं चाहता कि हम अभाव की ज़िंदगी जिये बस ........ 

अभी हम भीख माँग रहे हैं क्या ?विशाल इतना कुछ है ,हमारे पास कल के लिए सोचते हुए ,आप आज को नहीं जी पा रहे हैं अफ़सोस है मुझे आपकी सोच पर ......

हाँ हाँ बोलोगी ...ही बिना काम किए मौज मस्ती में सब लुटा दिए तो कल सचमुच ही भीख माँगने की नौबत आएगी। अब मुझे कोई बहस नहीं करनी है। कहते हुए कमरे में सोने चला जाता है ,सुबह से थका हुआ रहता है इसलिए पलंग पर लेटते ही खर्राटे भरने लगा।

बबीता सोचने लगी कुछ तो करना पड़ेगा। अभी ही शादी हुई है, कुछ मौज-मस्ती तो बनता है। पैसे कमाने के लिए ज़िंदगी पड़ी है। मैं भी तो पढ़ी लिखी हूँ। मैं भी कमा सकती हूँ ,सिर्फ पैसे जमा करते रहेंगे तो ज़िंदगी का आनंद कब उठायेंगे। यह सब विशाल को समझना ही पड़ेगा। मैं हार नहीं मानूँगी। यह सोचकर वह निश्चिंत हो कर सो जाती है।

दूसरे ...दिन से पहले जैसे ही चलता रहा बबीता पूरी तरह से उसकी देख भाल कर रही थी। विशाल खुश था कि बबीता समझ गई है। इसीलिए कुछ नहीं कह रही है। चलो बला टली। उस दिन विशाल जैसे ही घर आया बबीता ने चाय बनाकर दिया और दोनों बैठकर चाय पी रही थे ,दोनों ही चुप थे। विशाल को लगा वह अभी भी ग़ुस्से में है ,शायद ....कैसे बात करूँ सोच ही रहा था कि कोरियर आया। विशाल ने लिया और देखा बबीता के नाम पर है तो लिफ़ाफ़ा बबीता को पकड़ाया। बबीता ने उसे खोल कर देखा और कहने लगी विशाल मुझे नौकरी मिल गई है ६० हज़ार तनख़्वाह है। मुंबई में एक महीने की ट्रेनिंग है। मुझे दो दिन में निकलना है। कहते हुए बबीता कमरे में चली गई। विशाल आश्चर्यचकित होकर खड़ा रहा फिर ग़ुस्से से कमरे में गया ..... यह क्या है बबीता ? तुमने मुझे बताया ही नहीं। देखो विशाल तुम्हें पैसे कमाने हैं न मैं भी कमा देती हूँ। जल्दी से ज़्यादा पैसे जमा कर लेंगे। और ज़ोर से हँसती है हाहाहा

तुम्हारा सारा काम जानकी कर देगी फिक्र मत करो ,बाकी तो तुम्हें बहुत कुछ आता है बस एक महीने की ही बात है फिर हम जहाँ माँगेंगे वहीं पोस्टिंग मिल जाएगी।

विशाल उदास हो गया। बबीता के जाने का दिन आ गया। विशाल ऑफिस से छुट्टी लेने की सोच रहा था कि बबीता को एयरपोर्ट पर छोड़ने जाऊँ ,पर बबीता ने कहा कंपनी की कार आएगी ,मैं चली जाऊँगी।

बबीता चली गई विशाल को घर काटने दौड़ता था। अभी उसे जाकर दो दिन ही हुए। वह सोचने लगा ,एक महीना कैसे बिताऊँगा। अब उसका मन काम करने में भी नहीं लगता था। सोचने लगा मैं भी कितना बेवकूफ हूँ कि बबीता को नहीं समझ पाया। उसकी ज़रूरतों को भी पूरा नहीं किया। वह क्या चाहती थी सिर्फ़ सप्ताह में एक दिन बाहर घूमने जाना या एक सिनेमा बस उसकी छोटी सी ख्वाहिशों को भी मैंने अनदेखा कर दिया। पैसा ही सब कुछ है ,समझते हुए अपने जीवन के कीमती पलों को खो दिया।

अभी चार दिन ही हुए हैं बबीता को गए हुए पर मेरा मन उसके बिना लग ही नहीं रहा है। विशाल शाम को ऑफिस से आकर बिना कपड़े बदले जानकी के द्वारा दी गई चाय पी रहा था। तभी पीछे से किसी ने उसकी आँखें बंद किया ...... मेरा दिल धक से रह गया। मैंने दोनों हाथ पकड़कर कहा बबीता........वह बबीता ही थी जो आगे आकर मेरे साथ ही बैठ गई। तुम इतनी जल्दी वापस आ गई। बबीता कुछ कहती ,इससे पहले मेरे फ़ोन की घंटी बजी देखा तो माँ थी। जी ..बोलो माँ कैसे याद किया। माँ ने कहा -विशाल बबीता पहुँच गई है न। वह तो ....... हाँ वह मुंबई नहीं यहाँ मेरे पास आई थी। तेरी दी भी आई थी। दोनों ने बहुत अच्छे से अपना समय बिताया और हाँ तेरी पसंद की कचौरी और पालक पनीर बनाना भी उसने सीख लिया है। अब वो तुझे बनाकर खिला देगी। मेरे लिए तुम्हें इंतज़ार करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। बहुत अच्छी बच्ची है विशाल ....उसकी कद्र कर और उसके बारे में सोच पैसे तो कमाते ही रहोगे बेटा ,पर ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा। उसे अच्छे से जी ले ठीक है। मैं और पापा अगले महीने तेरे पास आएँगे। कुछ दिनों के लिए ठीक है। ख़ुश रहो बेटा ......

मैंने पलट कर बबीता को देखा ,वह हँस रही थी। मैंने उसे अपने बाँहों में भर लिया और कहा — बबीता अब हम एक पल भी बेकार में नहीं जाने देंगे फ़ुल एनजॉय करेंगे क्योंकि ...... दोनों ने एक साथ हँसते हुए कहा “ ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा। “ 

        समाप्त 



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