वो पहाड़ी लड़की
वो पहाड़ी लड़की
कहते हैं “जब प्यार होता है तो बताकर नहीं होता” मुझे भी हुआ था जब उसे पहली बार देखा हवा से बातें करते हुए, मंद-मंद मुस्कुराते हुए, फूलों में अपनी खुशबू बिखेरते हुए
उन दिनों मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ शिमला आया हुआ था। बहुत सुना था शिमला की वादियों के बारे में, शिमला की खूबसूरती के बारे में.. और वहां मैनें उसे देखा। बला की खूबसूरती। उसे देखकर ऐसा लगा “जैसे सूरज नें अपनी पहली किरण की लालिमा उसे ही दे दी हो, फूलों नें उससे महकना सीखा हो और कलियों नें उससे खिलना।” देखने से वो एक मामूली सी आम सी पहाड़ी लड़की थी लेकिन मेरे लिए वो किसी खूबसूरत राजकुमारी से कम नहीं थी।
मैं उस समय अपने दोस्तों के साथ कुल्हड़ वाली गर्म चाय के मजे ले रहा था और मेरे बाकी दोस्त अपनी चटपटी और मजेदार बातों से शाम का शमां बांध रहे थे और मैं तो बस कुल्हड़ की गर्म चाय की भाप में उस पहाड़ी लड़की को एकटक देखे जा रहा था जो सामने वाले बगीचे से फूलों को कांट-छांटकर अपनी पीठ के पीछे बंधी एक बड़ी से टोकरी में डालती जा रही थी। अचानक से मैं उठा और उस पहाड़ी लड़की की ओर बढ़ गया। उसके नजदीक पहुंचकर मैनें पूछा आप क्या यहीं-कहीं आस-पास की रहने वाली हैं? तो उसने पलटकर मुझे देखा और फिर वापस अपने कार्य में मशगूल हो गई। फिर मैनें कहा मैं कार्तिक हूं और यहां अपने कुछ दोस्तों के साथ शिमला घूमने आया हूं लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया। वो चुपचाप अपने काम में लगी रही। मैंने दोबारा पूछा क्या आप मुझे और
मेरे दोस्तों को शिमला की सैर करवा सकती हैं ? तो उसने मुझे दोबारा मुड़कर देखा और फिर मुझसे दो कदम की दूरी पर बैठे मेरे दोस्तों को.. जो अब भी अपनी चटपटी और मजेदार बातों में व्यस्त थे, वो उन्हें देखकर फिर बिना कुछ बोले अपनी टोकरी फूलों से भरकर पगडण्डी के रास्ते आगे बढ़ गयी और मैं उसे जाते हुए देखता रहा। मन में यही सोचता रहा कि अब कब उससे अगली मुलाकात होगी।
अगले दिन बाजार में मैनें फिर उसे ही देखा। वो एक छोटी सी दुकान पर फूलों के गुलदस्तों को बेंच रही थी। मैं उसे देखकर खुशी से झूम उठा फिर अपने दोस्तों को आगे भेजकर मैं उसकी दुकान की ओर बढ़ गया।
“किसी फिल्म में सुना था जो आज मुझ पर बिल्कुल सटीक बैठ रहा था कि किसी चीज को अगर बड़ी शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात तुम्हें उससे मिलाने में लग जाती है।” और यही आज मेरे साथ हो रहा था। जिससे मिलने की मैं दिल से ताकीदें पढ़ रहा था वो आज मेरे सामने खड़ी थी।
मैंने उससे पूछा ये लाल गुलाब के फूलों के गुलदस्ते कितने के दिये? तो उसने मुझे मुड़कर देखा। “50 रूपये” उसने कहा और गुलदस्ते का मूल्य बताकर पुनः वो अपनी दुकान के गुलदस्तों के फूलों को सवारने में लग गई। मैनें दोबारा पूछा आपसे कल जो पूछा था उसका जवाब तो आपने दिया नहीं? ये सुनकर वो पुनः मेरी तरफ पलटी और अपने दोनों हाथ मेरी तरफ बढ़ा दिया। उसके एक हाथ में लाल गुलाब का गुलदस्ता और दूसरा हाथ उस लाल गुलाब के गुलदस्ते की कीमत अदायगी के लिए बढ़ाया गया था जो मुझे देना था। मैनें हां में सिर हिलाकर उसके नर्म-गर्म हाथों में 50 रूपये का नोट थमा दिया और उसकी हथेली की गर्माहट मैनें पूरी शिद्दत से अपने अंदर महसूस की। मैं कुछ देर वहीं खड़ा उसे देखता रहा। फिर उससे पूछा क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ? फिर उसने मुड़कर दोबारा मुझे देखा “आपका हो गया हो तो आप जा सकते हैं, दुकान बढ़ाने का समय हो गया है!” उसने कहा तो मैं बुरी तरह झेंप गया और दुकान से निकलकर दुकान से कुछ दूर आकर खड़ा हो गया और उसे दूर से ही देखता रहा। कुछ देर में ही वो दुकान बढ़ाकर पहाड़ी के रास्ते बड़े वाले पहाड़ के पीछे चली गयी।
वो रात मेरी आंखों ही आंखों में कटी। पूरी रात उस पहाड़ी लड़की का मासूम चेहरा घूमता रहा। जाने क्यों अब वो पहाड़ी लड़की मेरे लिए एक पहेली बनती जा रही थी। मेरे लिए उसको समझना मुश्किल होता जा रहा था। मैं जब भी उससे बात करने की कोशिश करता वो उसे टाल देती और आगे बढ़ जाती। मैं उसका नाम भी नहीं जानता था तो मैनें ही उसे एक नाम दे दिया था ‘काव्या’ वो थी भी तो किसी नज्म या फिर किसी कविता की तरह जो मेरी समझ से बिल्कुल परे थी। आखिर मुझे कोई कविता या कोई नज्म की भाषा कब समझ आई जो अब समझ आती। मैनें तय कर लिया था कि अगले दिन उससे बात किये बगैर मैं हटूंगा नहीं.. सोचते हुए न जाने कब आंख लग गई और जब आंख खुली तो सुबह के 5 बज चुके थे। मैं झट से उठा और तैयार होकर उसी पगडण्डी के रास्ते उस बड़े वाले पहाड़ के पीछे की ओर चल दिया।
मैं आगे चल रहा था कि किसी के सुबुकने की आवाज सुनाई पड़ी। जब इधर उधर देखा तो वही पहाड़ी लड़की अपने घर के बाहर मुंह ओनधाए रो रही थी। तो मैं उसके नजदीक चला गया। “सुनिए आप रो क्यों रही हैं?” मैनें उससे पूछा। सुनकर उसने मेरी तरफ सिर उठाकर देखा और हमेशा की तरह इस बार भी वो फिर से मुझे अनसुना करके अंदर जाने लगी। लेकिन इस बार मैनें सोच कर आया था कि कुछ भी हो इससे मैं बात करके रहूंगा।
मैंने झट से उसकी कलाई को कसकर पकड़ लिया। लेकिन काव्या नें एक बार भी जैसे हाथ छुड़वाने की जरा सी भी कोशिश नहीं की। फिर मैं उसके सामने आकर खड़ा हो गया। उसकी आंखें बही जा रही थी। मैं नहीं जानता था कि वो मेरे लिए क्या है या मैं उसके लिए क्या महसूस करता हूं! मगर मुझसे उसके आंसू नहीं देखे जा रहे थे। मैनें कहा “बताओ कि क्या हुआ है और तुम रो क्यों रही हो?” मैं अब आप से तुम पर आ गया था। अगर ना बताना चाहो तो कोई बात नहीं..मैनें कहा तो वो सुबुकते हुए मुझसे लिपट गयी। वो पल मेरे लिए वहीं थम गया। ऐसा लगा जैसे हरसिंगार के फूलों से बना डुपट्टा आकर मुझसे लिपट गया हो। हरसिंगार के पेड़ से झरते फूल भी मेरे साथ उसकी सांसों की नर्म गर्म हवा के बहाव में बहता जा रहे हों।
कुछ देर रो लेने के बाद उसने कहा तो मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी। हरसिंगार के फूलों के डुपट्टे से सारे फूल झड़ने लगे हों। “मेरा नाम रोहणी है। मैं अपने बाबा के साथ शिमला से कुछ दूर स्थित एक छोटे से गांव में रहती थी। मेरे बाबा की वहां फूलों के गुलदस्ते की छोटी सी दुकान थी। मैं और मेरे बाबा मिलकर उस दुकान को देखते थे। मां तो थी नहीं तो बाबा ही मेरे लिए सबकुछ थे और मैं बाबा के लिए।
फिर एक दिन जब मैं दुकान को सजा रही थी कि तभी एक बड़ी सी गाड़ी मेरी दुकान के आगे आकर रूकी। उस बड़ी सी गाड़ी में से एक खूबसूरत सा नौजवान निकलकर मेरी दुकान की ओर आया। मैं उसे देखती रह गयी थी। वो मेरी दुकान से एक लाल गुलाब का बड़ा सा गुलदस्ता लेकर चला गया लेकिन मेरी नजरें अब भी उसी पर टिकी हुई थी। ऐसे ही अब वो हर रोज मेरी ही दुकान से लाल गुलाब का बड़ा सा गुलदस्ता लेकर जाने लगा और मैं भी रोज की तरह उसका दुकान पर आने का इंतजार करने लगी।
फिर एक दिन मैं हमेशा की तरह शाम को बगीचे से फूल चुन रही थी तो किसी गाड़ी के रूकने की आवाज सुनी। उस समय मैनें सोचा नहीं था कि वो होगा, लेकिन जब गाड़ी से वो उतरा तो मेरी दिल की धड़कनें बढ़ गयी। फिर मैनें देखा वो मेरी ही तरफ बढ़ा चला आ रहा था तो मुझसे मेरे दिल पर काबू ही नहीं हो पा रहा था। कुछ पल बाद वो मेरे सामने खड़ा था, मेरे एकदम नजदीक.. इतने नजदीक कि उसके सांसों की गर्माहट मुझे अपने अंदर तक महसूस हो रही थी। “रोहिणी मुझे तुम बहुत पसंद हो; क्या तुम मेरे साथ विवाह के बंधन में बंधना चाहोगी।” उस दिन मुझे लगा जैसे मुझे जन्नत मिल गयी हो। फिर पापा का चेहरा मेरी आंखों के आगे नाच गया। मैनें कहा “आपके साथ कौन सी लड़की शादी नहीं करना चाहेगी। वो बहुत खुशनसीब होगी जिसके साथ आपकी शादी होगी। मगर माफ कीजिएगा मै आपके साथ शादी नहीं कर सकती। मैं अपने बाबा को अकेला नहीं छोड़ सकती।”
“अगर मैं कहूं तब भी नहीं।” कि तभी पीछे से आवाज आई। मैनें मुड़कर देखा तो बाबा खड़े थे। बाबा नें भरी आंखों से हम दोनों को आर्शीवाद दिया और फिर मैं विक्षोम के साथ शादी करके शिमला आ गयी। सबकुछ वक्त के साथ सही चल रहा था। विक्षोम मुझसे प्यार भी बहुत करते थे। पर कहते हैं ना खुशियों की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती। हम दोनों के प्यार पर किसी की बुरी नजर लग गयी। विक्षोम को किसी और से प्यार हो गया और फिर।. और फिर वो मुझे हमेशा के लिए छोड़कर चला गया।” कहते हुए रोहणी मेरे सीने पर सिर रखकर बेतहाशा रो पड़ी। फिर कुछ देर बाद उसने कहा “विक्षोम के मुझे छोड़कर चले जाने की खबर सुनकर बाबा भी मुझे छोड़कर चल बसे। कहते हुए वो सुबुकने लगी। लेकिन मैं वहीं उसे सहारा दिये हुए स्तब्ध खड़ा था। कुछ देर बाद सूरज की तेज रोशनी सड़क पर पूरी तरह से फैल गयी। बाहर लोग अपने आसपास नजर आने लगे तो वो सिमटने लगी और खुद को मुझसे छुड़वाते हुए घर के अंदर जाने लगी तो इस बार फिर मैनें उसका हाथ पकड़कर पीछे से उसे रोक लिया। “रोहिणी मैं जानता हूँ कि अब तुम्हारा प्यार पर से भरोसा उठ गया है, लेकिन मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं और तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं। क्या तुम मुझसे शादी करोगी? मैं वादा करता हूं कि विक्षोम की तरह। मैं तुम्हें कभी छोड़कर नहीं जाऊँगा। रोहिणी विक्षोम नें तो तुमसे कभी प्यार किया ही नहीं लेकिन मैनें तो तुम्हें उस दिन से प्यार किया है जिस दिन से तुम्हें देखा है।” मैनें कहा तो रोहिणी वहीं चुपचाप खड़ी रही। कुछ देर इंतजार करने के बाद भी जवाब ना आने पर मैं मुड़कर जाने लगा तो पीछे से किसी की आवाज सुनाई पड़ी जो रोहिणी को हां कहने के लिए मना रहे थे। मैं उन सबकी आवाज सुनकर रूक गया। फिर कुछ देर बाद सभी खामोश हो गये। लेकिन रोहिणी नें कुछ नहीं कहा। कुछ देर बाद जैसे ही मैं जाने लगा तो पीछे से अपने हथेली पर किसी की गर्माहट महसूस की वो गर्माहट रोहिणी के हाथों की थी। वो भी अब मेरे साथ ही चल रही थी। मेरे साथ मेरे प्यार के सफर पर।