Gyan Priya

Romance

4.2  

Gyan Priya

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प्यार का एक रंग ऐसा भी

प्यार का एक रंग ऐसा भी

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कहतें हैं प्यार का कोई रंग नहीं होता, प्यार को जिस रंग में देखना चाहो उस रंग में ही दिख जाता है। लाल रंग में देखना चाहो तो आपको प्यार का रंग लाल नजर आता है, पीला रंग (यानी दोस्ती का) देखना चाहो प्यार का पीला रंग नजर आता है। और गुलाबी में देखना चाहो तो गुलाबी नजर आता है। प्यार का कोई भी रंग हो, लेकिन प्यार..., प्यार ही होता है और एक ऐसी ही रूमानी कहानी मै आपके सामने पेश करने जा रही हूँ, जिसे पढ़कर आप कहेंगे “प्यार का एक रंग ऐसा भी”

कॉलेज वक्त की बात थी। काया अपने कॉलेज की जान थी, इतनी खूबसूरत... कि कोई भी लड़का उसे एक बार देख ले तो उस बिना देखे रह ना पाए। लंबे घने बाल जिसे वो हमेशा विभिन्न तरह के स्टाईल में समेटकर रखती। काली-काली कटीली आंखें, जिसे भी देख ले.. बस वो उसका दीवाना हो जाए। सौंदर्यता के रूप में अप्सरा थी वो... हर कोई उसके पीछे पागल था, हर कोई उसको पाना चाहता था, उसको अपना बनाना चाहता था। लेकिन काया के दिल में तो कोई और बसा था। अबीर... हाँ अबीर नाम था उसका। अबीर काया के कॉलेज में उसी के साथ में पढ़ता था। अबीर एकदम काया के विपरीत थी। हर आती-जाती लड़की को घूरना, उनके साथ फलर्ट करना ये सब उसका शौक था। ना जाने काया को उसमें क्या दिखा जो उससे मन ही मन प्यार कर बैठी।

काया जब भी कॉलेज जाती, तो बस अबीर को ही छिप-छिपकर देखती, अबीर भी इस बात से अंजान नहीं था कि कॉलेज की सबसे खूबसूरत लड़की उस पर मरती है। लेकिन तब भी वो जान बूझकर उससे दूर रहने के बहाने खोजता। जब भी काया उसके पास से गुजरती या वो उसे देख भी लेता तो अबीर अपना रास्ता बदल लेता और यही बात काया को चुभ जाती। लेकिन काया उस पर गुस्सा होने के बजाये, वो उसके लिए और तड़पती, उसका अबीर के लिए, उसके दिल में बसा प्यार उसके लिए और बढ़ जाता।

अबीर और काया के ही कॉलेज में प्रत्यूष भी पढ़ता था। जो काया और अबीर के ही साथ में था। प्रत्यूष, काया को दिल-ओ-जान से भी ज्यादा चाहता था। उसकी परवाह करता था, उसे बहुत पसंद करता था। लेकिन काया का सिर्फ और सिर्फ ध्यान अबीर पर होता इसलिए उसे ये भी नहीं पता था कि उसके कॉलेज में.., उसकी क्लास में... उसके सहपाठी कौन-कौन हैं। वैसे प्रत्यूष बहुत ही खूबसूरत नौजवान में से तो नहीं था लेकिन औसत था। लंबाई, चौड़ाई, डील-डौल सब कुछ औसत था।

काया, अबीर और प्रत्यूष का कॉलेज खत्म को था कि काया नें तय किया कि आज वो अपने दिल की बात अबीर को बताकर ही रहेगी। तीन-चार साल काया नें आंखों ही आंखों में गुजार दिये मगर अपने दिल की बात को अपनी जुबान पर नहीं ला सकी और आज उसके पास सही मौका भी था और समय भी...।

दूसरी तरफ काया के पापा एक सरकारी बैंक के बड़े पद पर विद्यमान थे। उन्होंने काया के लिए रिश्ते खोजना भी शुरु कर दिया था। क्योंकि उनके घर का एक रिवाज था जिसमें उनके घर की लड़कियों की शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कार्य 28 साल के पूरा होने से पहले ही कर दिया जाता है। जिसे काया भी नकार नहीं सकती थी। लेकिन अबीर को भी भूलना उसके लिए आसान नहीं था। क्योंकि एक-तरफा प्यार था जो उसका..

अगले दिन काया नें तय किया, कि वो आज कुछ भी करके अबीर को अपने दिल का हाल कह सुनायेगी। कि तभी काया के पापा नें घर पर आकर बताया “वसुंधरा बिट्टो को आज एक लड़के वाले देखने आ रहे हैं और हाँ सुन बिट्टो तू ना आज कॉलेज मत ही जाना और वैसे भी दो दिन बाद कॉलेज तो तुम्हारा बंद हो ही रहा है तो आज से ही सही....।”

काया की सारी खुशियाँ पल भर में ही काफूर हो गयीं। क्योंकि काया जानती थी “अबीर उससे प्यार नहीं करता है, अगर करता तो चार साल चुप नहीं रहता आकर कह डालता। छोड़ो मै ही कुछ ज्यादा सोच रही हूँ! अगर मैनें कह भी दिया और उसने मना कर दिया तो वैसे भी मेरा दिल टूटना ही है तो इस घर की मर्यादा को मै क्यों बिखरने दूँ। क्यों मेरे घर की मर्यादा पर छींटाकसी हो, इस घर की बेटियों को ज्यादा ही छूट मिली है, जिस दिन लड़के वाले देखने आने वाले थे उसी दिन ही इसने अपने प्यार का इजहार कर डाला वो भी किसी और से... इस घर की मान-मर्यादा, प्रतिष्ठा इन सबका ख्याल भी नहीं आया इसको..! आखिर बेटियों को ही क्यों मान-मर्यादा, प्रतिष्ठा का पाठ पढ़ाया जाता है। उनसे ही क्यों उम्मीद की जाती है इसे संजोय कर रखने की...”

इसलिए काया अपने पापा की बात मान कॉलेज ना जाने का फैसला करती है और उस लड़के से मिलने के लिए मान जाती है। घर पर लड़का और उसके परिवार वाले आ चुके थे। वसुंधरा जी और काया के पिताजी उनके सेवा सत्कार में लगे हुए थे। ऊपर अपने कमरे में काया तैयार हो रही थी।

हल्के नीले रंग का कुर्ता उस पर गुलाबी पटियाला सलवार और उसके ऊपर (हल्का नीला और गुलाबी रंग) दो रंगों से रंगा हुआ उसका डुपट्टा... काया की सुंदरता पर चार-चांद लगा रहे थे। हल्की गुलाबी रंग वाली होठों पर लगी लाली, आंखों पर सूरमा जितना गहरा लंबा काजल, लंबे-लंबे, कमर तक लहलहाते केश और उसके चेहरे बार-बार बिखरते उसके बालों की लटाएँ... उसके चेहरे के आभा की और भी ज्यादा शोभा बढ़ा रहे थे। काया उदास मन से खुद को आईने में निहार रही थी। कि तभी... बाहर से काया को उसके पापा नें बुलाया।

काया अपने-आप को संयमित करते हुए उन सबके सामने आई।

“काया बेटा... ये प्रत्यूष है और ये उसके मम्मी-पापा, ये प्रत्यूष की बहन..और ये हैं.. प्रत्यूष के मामा जी...” वसुंधरा जी नें काया का सबसे परिचय करवाया।

काया को प्रत्यूष की माँ नें अपने पास बुलाया। “बहुत ही प्यारी है काया, जैसा मुझे अपने बेटे प्रत्यूष के लिए चाहिए थी, बिल्कुल वैसी ही...बहुत प्यारी और बहुत सुंदर।”

कि तभी.. “माँ...” प्रत्यूष नें बीच में ही रोक दिया।

“अच्छा वसुंधरा जी, अब कुछ बच्चों को भी बातें कर लेने दीजिए, हम लोगों का क्या है? हमारी बातें कहाँ खत्म होने वाली.. वो तो होते रहेंगी।” प्रत्यूष की माँ नें कहा।

काया और प्रत्यूष दोनों को काया के कमरे में भेज दिया जाता है। प्रत्यूष की नजरें सिर्फ काया पर ही टिकी रहती है और उसके शब्द गले में ही अटके रहते हैं।

“आपको कुछ पूछना हो तो पूछ सकते है।” काया नें पहल की।

“जी नहीं....” प्रत्यूष नें उत्तर दिया। आपको कुछ पूछना हो तो.... इस बार प्रत्यूष नें कहा।

तो काया नें ना में सिर हिला दिया। लेकिन प्रत्यूष बड़े प्यार से काया को एक-टक देख ही रहा था।

“तो फिर चलें...” काया नें खुद को सहज करते हुए पूछा। 

“ज...जी... जरूर” 

फिर दोनों नें ही रजामंदी दे दी शादी के लिए .. और दोनों की शादी भी हो गयी।

प्रत्यूष बहुत खुश था, लेकिन काया... उसके चेहरे की हंसी कहीं खो गयी थी। काया प्रत्यूष के कमरे में थी। पूरा कमरा काया की पसंद के अनुसार सजा हुआ था। काया पूरे कमरे को निहार रही थी। कि तभी दरवाजा खुला। प्रत्यूष कमरे के अंदर आ चुका था।

“कमरा पसंद आया आपको... सबकुछ आपकी पसंद का है।” प्रत्यूष नें कमरे में आते ही पूछा।

ह्म्म..., कहकर काया अपने गहने उतारने लगी।

“एक बात बोलूँ आपको.... मै आपको कॉलेज के पहले दिन से ही बहुत पसंद करता था। लेकिन मुझे पता है आप मुझे पसंद नहीं करती हैं। आप अबीर से प्यार करती हैं।” प्रत्यूष नें जब कहा तो काया का मुंह खुला का खुला रह गया।

“पर आप...” काया नें कहा ही था कि प्रत्यूष नें उसकी बात को बीच में काटते हुए कहा।

“हाँ मैं आपके कॉलेज में आपके साथ में था पर आपने कभी ध्यान ही नहीं दिया, मुझ पर... मुझ पर क्या... किसी और पर भी.. नहीं दिया।

लेकिन आप चिंता मत कीजिए, मै आप पर दबाव नहीं बनाऊंगा, आप मेरे पास ना भी आना चाहें तो भी चलेगा।” प्रत्यूष नें कहा और अपना तकिया चद्दर लेकर वहीं कमरे में रखे दीवान पर सोने चला गया।

“एक बात पूछूँ... आपसे...” काया नें प्रत्यूष के नजदीक आकर पूछा।

“ज..जी... कहिये” प्रत्यूष नें हकलाते हुए कहा।

“आपने मुझसे शादी क्यों की, जब आपको पता था कि मै किसी और को पसंद करती हूँ तो आपने मुझसे शादी क्यों की?” काया नें थोड़े कड़की के साथ कहा।

आप बताइये.. आपने मुझसे शादी क्यों की? जब आपको अबीर पसंद था। प्रत्यूष नें अपने बचाव में सवाल किया।

“सवाल के जवाब में सवाल नहीं करते” काया नें कहा।

मैंने अपने पापा के लिए किया, क्योंकि मैं पापा झुकते हुए नहीं देख सकती और अब तुम बताओ तुमने क्यों शादी की मुझसे? काया नें पूछा।

“आपके लिए... आपको किसी से बचाने के लिए.. खैर वो आपको समझ नहीं आएगा अभी क्योंकि आप अभी गुस्से में है! पर मै आपके लिए कुछ लाया था। अभी के लिए नहीं है... बाद में जब आपको विश्वास हो जाए मुझ पर तो आप इसमें से एक रंग में रंग लीजिएगा खुद को...”

काया वो दोनों बॉक्स खोलकर देखती है। उसमें दो रंग के फूल रखे होते हैं।

“काया ये दो रंग के फूल हैं तुम्हारे लिए... पीला रंग दोस्ती के लिए है... और लाल रंग...तुम्हें पता है लाल रंग का मतलब! तब तक इन्हें जीवित रखनें की जिम्मेदारी तुम्हारी है।” कहकर प्रत्यूष चद्दर तानकर सो गया।

लेकिन काया के मन में कई सवाल छोड़ गया। पूरी रात काया की आंखों में आंसूओं के साथ कटी। इसलिए सुबह देर से उसकी आंख खुली। दीवान पर नजर डाली तो देखा प्रत्यूष कमरे से जा चुके थे। फिर फ्रैश होने के लिए उठी ही थी कि उसकी नजर टेबल पर रखे बॉक्स पर पड़ी और फिर कल रात की बात याद आ गयी। गुस्से में काया नें उन दोनों फूलों को खिड़की से बाहर फेंक दिया और फ्रैश होने चली गयी। लेकिन पता नहीं क्या हुआ उसे; उसने उन फूलों को दोबारा कमरे के अंदर ले आई और उन्हें जीवित रखने के लिए नमक पानी से भरे वॉस्क में डाल दिया। काया रोज उन फूलों के पानी को बदलती। धीरे-धीरे काया का प्रत्यूष के प्रति गुस्सा खत्म होता जा रहा था। काया में आया बदलाव वो खुद भी धीरे-धीरे महसूस करने लगी थी।

एक दिन काया अपनी ननद के साथ... मॉर्केट गयी हुई थी। कि वहाँ उसने अबीर को देखा जो दूसरी लड़कियों के साथ फ्लर्ट कर रहा था। उसे देखकर वो वापस अपने पुराने समय में चली गयी और अपनी शादी को भी भूल गयी। और फिर अपने आप ही उसके कदम अबीर की ओर बढ़ने लगे। पीछे से काया को उसकी ननद आवाज लगा रही थी लेकिन जैसे उसे कोई सुध ही नहीं थी। वो बस अबीर के ही ख्यालों में खोई हुई थी। कि तभी उसने कुछ ऐसा सुना कि उसके कदम अपने आप ही ठहर गये।

वो वापस तेज कदमों से चलकर घर की ओर निकल पड़ी। पीछे-पीछे उसकी ननद भी हो ली।

फिर उसे एकाएक सबकुछ साफ-साफ नजर आने लगा। प्रत्यूष की बातें उसे सच लगने लगी। कि तभी उसकी ननद नें उसे रोका।

“रुकिए भाभी... क्या हुआ है आपको?” ननद के प्रेम भरे स्वर सुनकर... वो उससे लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगी।

“पिया... मुझे माफ कर दो। मैनें तुम्हारे भैया को बहुत गलत समझा। मुझे लगा वो झूठ कह रहे थे। वो म़ुझे बस पाना चाहते थे इसलिए मुझसे शादी की जबकि ये जानते हुए कि मै अबीर को पसंद करती हूँ। मगर वो तो... ”

“बस भाभी... अब आप बोलिए हुआ क्या..” पिया नें चुप कराते हुए पूछा।

पिया जिस दिन तुम्हारे भैया मुझे देखने आने वाले थे। उस दिन मै अपने प्यार का इजहार अबीर से करने वाली थी। लेकिन पापा के कहने पर और ये सोचकर कि मै अपने पापा का सिर झुकते हुए नहीं देख सकती, इसलिए मै अबीर को भुलाकर तुम्हारे भैया से मिलने के लिए मान गयी। मगर आज जो मैनें सुना... और फिर काया रोने लगी। वो मुझसे प्यार नहीं करता था। और वो ये बात जानता था कि मै उसे पसंद करती हूँ लेकिन वो मुझसे जान बूझकर दूर जाता ताकी मै खुद से आकर उससे अपने प्यार का इजहार करूँ और फिर वो मेरे प्यार और भरोसे का फायदा उठाकर.. लेकिन मैनें तुम्हारे भैया की बात को झुठला दिया। मुझे लगा वो झूठ बोल रहे हैं सिर्फ मेरा भरोसा जीतने के लिए...।

मैं क्या करूँ पिया.., अब मै तुम्हारे भैया से आंखें मिलाने के काबिल भी नहीं रहीं। मै तो उनके प्यार के बिल्कुल लायक नहीं हूँ। मै उन्हें बिल्कुल डिजर्व नहीं करती...” कहते हुए काया जाने के लिए मुड़ी।

कि पिया ने उनका हाथ पकड़कर रोकते हुए कहा “नहीं भाभी... आप ही मेरे भैया के लिए पूरी तरह से काबिल हैं। भैया तो आज भी आपसे उतना ही प्यार करते हैं जितना पहले करते थे। आपका आज भी इंतजार कर रहें हैं भाभी वो... जैसे पहले आपके कॉलेज टाईम में करते थे। जाईये भाभी... अभी भी समय खत्म नहीं हुआ है, सबकुछ खत्म नहीं हुआ है। इस बार आप फिर से रंग लीजिए भैया को अपने प्यार के रंग में... जाईये भाभी... जाईये।”

काया दौड़ते हुए घर जाती है, और अपने पूरे कमरे को अपने प्यार के लाल रंग से रंग डालती है। और एक नयी नवेली दूल्हन की तरह तैयार होकर प्रत्यूष का कमरे में इंतजार करती है।

और फिर जैसे ही प्रत्यूष कमरे में प्रवेश करता है, काया उसे दौड़कर अपनी बाहों में भर लेती है और उससे अपने किये के लिए माफी मांगती है। फिर दोनों उस रात को हसीन रात के रूप में यादगार बनाते हुए एक दूसरे की बाहों में गुम हो जाते हैं। तो मानते हैं ना आप भी “प्यार का एक रंग ऐसी भी” हो सकता है।


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