टीले पर
टीले पर
पूरे दिन बच्चे मेहनत करते रहे - - वे कम्पाऊण्ड में बर्फ का टीला बना रहे थे। फावड़ों से खोद-खोदकर बर्फ लाते और गोदाम की दीवार के नीचे उसका ढेर बनाते। दोपहर के भोजन तक जाकर टीला पूरा हुआ। बच्चों ने उस पर खूब सारा पानी डाला और खाना खाने के लिए अपने-अपने घर भागे।
“जब तक खाना खाते हैं,” उन्होंने कहा, “तब तक टीला जम जाएगा। लंच के बाद हम अपनी-अपनी स्लेज लेकर आएँगे और खूब चलाएँगे।”
मगर फ्लैट नंबर 6 का कोत्का चीझोव बड़ा चालाक था ! उसने टीला नहीं बनाया था। घर में बैठे-बैठे, बस खिड़की से देखता रहा कि दूसरे बच्चे कैसे मेहनत कर रहे हैं। बच्चे चिल्ला-चिल्लाकर उसे टीला बनाने के लिए बुलाते, मगर वो सिर्फ खिड़की से हाथ हिला देता और सिर हिला देता - - मानो कि उसे इसकी इजाज़त नहीं है। और जब बच्चे चले गए, तो उसने जल्दी से गरम कपड़े पहन लिए, पैरों में स्केट्स बांध लिए और उछलते हुए कम्पाऊण्ड में पहुँच गया। स्केट्स से बर्फ पर चिर्-चिर् की आवाज़ करता रहा, चिर् ! मगर ठीक तरह से स्केटिंग करना उसे नहीं आता था ! चल पड़ा टीले की ओर।
“ओह,” बोला, “बढ़िया टीला बना है ! अभ्भी नीचे की ओर फिसलता हूँ।”
मगर जैसे ही वो टीले पर चढ़ने लगा - - धड़ाम् से नाक के बल गिर पड़ा !
“ओहो !” वो बोला, “फिसलन भरा है !”
उठकर खड़ा हुआ और फिर से - - धड़ाम् ! दस बार गिरा। किसी भी तरह से वो टीले पर नहीं चढ़ सका।
“अब क्या किया जाए?” सोचने लगा।
सोचता रहा, सोचता रहा और फिर उसने फैसला कर लिया:
“अब मैं इस पे रेत बिखेर देता हूँ और फिर ऊपर चढ़ जाऊँगा।”
उसने प्लायवुड का एक टुकड़ा उठाया और केयर-टेकर के कमरे की ओर चल पड़ा। वहाँ - - रेत की बोरी थी। वो बोरी से रेत निकाल-निकालकर टीले की ओर ले जाने लगा। अपने सामने रेत बिखेरता जाता, और उसपर चलते हुए ऊँचे-ऊँचे चढ़ता जाता। टीले के बिल्कुल ऊपर तक पहुँच गया।
“लो, अब मैं यहाँ से नीचे फिसलता हूँ !”
मगर जैसे ही उसने पैर आगे बढ़ाया - - फिर से नाक के बल धड़ाम् !
स्केट्स तो रेत पर नहीं ना चलती हैं ! कोत्का पेट के बल पड़ा है और सोच रहा है:
“अब रेत पर स्केटिंग कैसे करूँ?”
और वो वैसे ही पेट के बल नीचे की ओर खिसकने लगा। तभी बच्चे भागते हुए आए। देखते क्या हैं - - टीले पर तो रेत बिखरी पड़ी है।
“ये सब किसने बिगाड़ दिया है?” वो चिल्लाए। “टीले पे रेत किसने बिखेर दी? तूने तो नहीं देखा, कोत्का?”
“नहीं,” कोत्का ने जवाब दिया, “मैंने नहीं देखा। ये तो मैंने ही रेत बिखेरी है, क्योंकि वो बहुत फिसलनभरा था और मैं उसके ऊपर चढ़ नहीं सकता था।”
“आह, तू, जीनियस ! क्या बात सोची है ! हम तो मेहनत करते रहे, मेहनत करते रहे, और इसने डाल दी – रेत ! अब स्केटिंग कैसे करेंगे?”
कोत्का ने कहा:
“हो सकता है, कि जब फिर से बर्फ गिरेगी, तो वो रेत को ढाँक देगी, बस, तभी स्केटिंग कर लेंगे।”
“हो सकता है कि बर्फ एक हफ़्ते बाद गिरे, मगर हमें तो आज ही स्केटिंग करनी है।”
“अरे, मुझे नहीं मालूम,” कोत्का ने कहा।
“नहीं मालूम ! टीले को कैसे ख़राब करना चाहिए, ये मालूम है, मगर उसे कैसे सुधारना चाहिए, ये नहीं मालूम ! फ़ौरन फ़ावड़ा उठा !”
कोत्का ने अपनी स्केट्स खोल दीं और फ़ावड़ा उठा लिया।
“रेत पर बर्फ डाल !”
कोत्का टीले पर बर्फ डालने लगा, और बच्चों ने फिर से उसे पानी से सींच दिया।
“अब ये जम जाएगा,” उन्होंने कहा, “और फिर स्केटिंग कर सकेंगे।”
मगर कोत्का को तो इस तरह काम करना इतना अच्छा लग रहा था कि उसने टीले के किनारे पर फावड़े से सीढ़ियाँ भी बना दीं।
“ये इसलिए,” उसने कहा, “कि सबको ऊपर चढ़ने में आसानी हो, वर्ना कोई और उस पर रेत बिखेर देगा !”