“चोट”
“चोट”
अपने प्रिय पालतू कछुओं को जब से चुनमुन ने तालाब में डाला है, उसकी दिनचर्या में तालाब किनारे नित घूमना भी शामिल हो गया है। आज घर आ कर सुबह सुबह ही वह चहकते हुये माँ से बोला “माँ आज मैंने तालाब के किनारे आराम करते हुये अपनें एक कछुये को देखा और पता है दूसरा वाला तालाब के अन्दर से सर उठा कर मुझे देख रहा था। तालाब किनारे वाले ने जैसे ही मुझे देखा कूद कर वह भी पानी में चला गया“ बेटा बोले जा रहा था और माँ मुग्धभाव से सब सुनती जा रही थी।
अभी कुछ दिन पहले कितना दुखी था, उसका लाड़ला जब वो अपने मामा के साथ घर में पाले गये सभी कछुओं को तालाब में छोड़नें गया था। कितना समझाया गया था उसे कि “इनको घर में नहीं पालना चाहिये।जितना खुश ये अपनें प्राकृतिक आवास में रहेंगे उतना काँच के घरों में नहीं” पर वह कछुओं को खुद से दूर करनें के लिये कभी तैयार ही ना होता था। उस दिन यदि बड़े कछुओं ने छोटे कछुये को मारा नहीं होता, तो शायद माँ द्वारा समझाई गयी बात उसे समझ में नहीं आती।
नन्हे कछुओं की मौत से उसका पशु प्रेमी दिल दुखी हो गया था और वो कहावत है ना कि लोहा जब गर्म हो तभी चोट करनी चाहिये। बस माँ और मामा ने भी तभी मौक़ा पा कर उसको कछुओं को तालाब में डालने के लिये तैयार कर लिया और आज कछुओं को उनके प्राकृतिक आवास में खुश देख कर वह भी अपनी भूल सुधार करके संतुष्टि के साथ घर वापस आ गया था।