कठोर फैसला
कठोर फैसला
वह अपने पति से बहुत प्रेम करती थी। उसकी सही गलत, हर बात आँख बन्द करके मानती थी। नशे की बुरी लत होने के बाबजूद उसे वह बहुत अच्छा लगता था। वो सोंचती थी कि अपने प्रेम से पति की इस बुराई को एक दिन अवश्य ही दूर कर देगी। बेटी की बढ़ती उम्र की तरह नशे की बढ़ती आदत पर वो चाह कर भी रोक नहीं लगा पा रही थी। उसका हर प्रयास विफल होता नजर आ रहा था।
रात में जब सभ्य समाज सो जाता है। ऐसे में पिता द्वारा इज़्ज़त पर हाथ डालने से घबराई बेटी की चीख़ सुन कर आज जो उसकी आँख खुली। पति को बेटी से अलग करके फौरन उसने उस पर सीधे बाल्टी भर पानी डाला और धमकाते हुये बोली, ”यह घर है। आज के बाद यदि पी कर आये तो घर में जगह नहीं मिलेगी और नशे की हालत में अगर घर में घुसने की कोशिश भी की तो छत से नीचे धकिया दूँगी। ऐसे पति की सधवा होने से अच्छा विधवा होना है।”
इस फ़ैसले पर आज मुहल्ले वाले भी उसके साथ थे। अगले दिन लोगों ने देखा कि वह बिना पिए ही सभ्य लोगो की तरह समय पर घर में घुस रहा था।