दुब्रोव्स्की - 1
दुब्रोव्स्की - 1
कई साल पहले अपनी अनेक जागीरों में से एक में पुराना ख़ानदानी रूसी ज़मींदार किरीला पेत्रोविच त्रोएकूरव रहता था. उसकी रईसी, ख़ानदान एवम् संबन्धों के कारण उन प्रांतों मे,जहाँ उसकी जागीर थी, उसे बड़ा मान प्राप्त थाथ,उसका काफ़ी वज़न था. पड़ोसी उसकी छोटी-छोटी सनकी इच्छाओं को पूरा करके आनंदित होते, प्रांतीय कर्मचारी उसके नाम से थरथर काँपते, किरीला पेत्रोविच इस भयमिश्रित आदर को यूँ स्वीकार करता मानो वह उसका हकदार हो. उसका घर मेहमानों से हमेशा भरा रहता था. वे उसके शोरगुल और धमाचौकड़ी के आयोजनों में भाग लेकर उसके ज़मींदारी दिखावे और अहम् की तुष्टि करने के लिए तत्पर रहते थे. उसके निमंत्रण को अस्वीकार करने और मेहमानों के लिए नियत दिनों में आदरपूर्वक पक्रोव्स्कोए गाँव में न आने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता था. जहाँ तक घर-गृहस्थी का सवाल है, तो किरीला पेत्रोविच में वे सभी बुराइयाँ थीं, जो एक अनपढ़ आदमी में होती हैं. अपने चारों ओर की सभी चीज़ों से सिर चढ़ा , वह अपनी सीमित बुद्धि से उपजी सभी वाहियात एवम् आततायी सनकों को खुली छूट देता था, किसी भी कीमत पर उन्हें पूरा करता था. अपनी सीमित शारीरिक शक्ति के बावजूद सप्ताह में दो बार वह अपने पेटूपन के कारण कष्ट पाता और हर शाम नशा करता. उसके घर के एक हिस्से में सोलह नौकरानियाँ रहा करतीं, जो हाथों से की जाने वाली कारीगरी में व्यस्त रहतीं. इस हिस्से की खिड़कियाँ लकड़ी की जाली से बंद की गई थीं, दरवाज़ों पर ताले थे. जिनकी चाभियाँ किरीला पेत्रोविच के पास रहती थीं. ये युवा कृषिदासियाँ नियत समय पर उद्यान में घूमने निकलती, दो बूढ़ियों की देखरेख में.समय-समय पर किरीला पेत्रोविच उनमें से कुछ की शादी करवा देता और बंधकों से वह सख़्ती से और मनमाने ढंग से पेश आता, इसके बावजूद वे उसके प्रति वफ़ादार थे,उन्हें अपने मालिक की सम्पन्नता और प्रसिद्धि पर गर्व था और उसकी छत्रछाया का लाभ उठाते हुए वे अपने पड़ोसियों से मनमाना बर्ताव करते.
त्रोएकूरव के हमेशा के शग़ल थे: अपनी विशाल जागीर की सैर, लम्बे समय तक चलने वाले प्रीतिभोज और नित नई सोची गई शरारत जिनका शिकार अक्सर कोई नव परिचित हुआ करता, हालाँकि पुराने मित्र भी कभी-कभार उनकी चपेट में आ जाते, सिर्फ एक अन्द्रेइ गव्रीलविच दुब्रोव्स्की को छोड़कर.यह दुब्रोव्स्की – सेना का सेवा निवृत्त लेफ्टिनेन्ट उसका निकटतम पड़ोसी था और सत्तर कृषिदासों का स्वामी था. त्रोएकूरव जो ऊँचे से ऊँचे ओहदेवाले व्यक्तियों के साथ भी उद्दण्डता का व्यवहार करता थाथ,दुब्रोव्स्की की, उसकी साधारण परिस्थिति के बावजूद, इज़्ज़त करता था. वे कभी सेना में एक-दूसरे के सहयोगी रह चुके थेऔर त्रोएकूरव उसके दृढ़निश्चयी एवम् उतावले स्वभाव से भली भाँति परिचित था. परिस्थितिवश वे कुछ समय के लिए एक-दूसरे से दूर हो गए थे. परेशानियों के कारण दुब्रोव्स्की को सेवा से निवृत्त होकर अपने पिछड़े हुए गाँव में बसना पड़ा था. इस बारे में जानकर किरीला पेत्रोविच ने उसे अपने संरक्षण में रहने की पेशकश दी, मगर दुब्रोव्स्की उसे धन्यवाद देकर निर्धन एवम् स्वावलम्बी बना रहा. कुछ वर्षों बाद त्रोएकूरव - सेवानिवृत्त जनरल, अपनी जागीर में आया, वे दोनों एक-दूसरे से मिलकर बड़े प्रसन्न हुए. तब से वे हर रोज़ साथ-साथ रहते और किरीला पेत्रोविच जो कभी किसी के घर नहीं जाता था, यूँ ही अपने पुराने मित्र के घर अक्सर चला जाता. हम उम्र और समाज के एक ही वर्ग में पले बढ़े होने के कारण वे स्वभाव एवम् रुचियों में भी एक दूसरे के काफ़ी निकट थे. कई बातों में उनका भाग्य भी एक-सा था. दोनों ने प्रेम-विवाह किया, दोनों की पत्नियाँ शीघ्र ही परलोक सिधार गई थीं, दोनों के ही एक-एक संतान थी. दुब्रोव्स्की का बेटा पीटर्सबुर्ग में पढ़ रहा थाथ,किरीला पेत्रोविच की बेटी पिता की आँखों के सामने ही बड़ी हो रही थी. त्रोएकूरव दुब्रोव्स्की से अक्सर कहा करता, “सुन, भाई, अन्द्रेइ गव्रीलविच, अगर तेरा वलोद्का सही राह पर निकल गया, तो अपनी माशा को उससे ब्याह दूँगा, चाहे वह निर्धन ही क्यों न हो.” अन्द्रेइ गव्रीलविच सिर हिलाते हुए कहता, “नहीं, किरीला पेत्रोविच, वलोद्का मारिया किरीलव्ना का दूल्हा नहीं है. उस जैसे निर्धन ज़मींदार के लिए ग़रीब कुलीना से शादी करना और अपने घर का मुखिया बने रहना ही उचित है बजाय इसके कि लाड़-प्यार में बढ़ी औरत का गुलाम बने.”
उद्दण्ड त्रोएकूरव एवम् उसके गरीब पड़ोसी की मित्रता से सभी जलते थे और उसकी निर्भीकता पर अचरज भी करते, जब वह किरीला पेत्रोविच के यहाँ खाने की मेज़ पर बैठकर दो टूक अपनी राय देता थाबगैर यह सोचने की तकलीफ़ किए कि कहीं वह मेज़बान की राय का विरोध तो नहीं कर रहा है. कुछ लोग उसकी नकल करने की कोशिश करते और सम्मान की अपेक्षित सीमा से बाहर निकलने की कोशिश करते, मगर किरीला पेत्रोविच ने उन्हें इतना डरा रखा था, कि वे फिर कभी इस तरह की हरकत करने की हिम्मत नहीं कर पाए, और दुब्रोव्स्की अकेला ही सभी नियमों से ऊपर बना रहा. मगर अचानक एक घटना ने सब कुछ खत्म कर दिया.
एक बार शिशिर के आरंभ में किरीला पेत्रोविच शिकार को निकला. शिकारी कुत्तों की देखभाल करने वाले नौकरों और साईसों को एक दिन पहले ही प्रातः पाँच बजे तैयार रहने की आज्ञा दे दी गई थी. तम्बू और रसोई का सामान पहले ही उस स्थान पर भेज दिए गए थे जहाँ किरीला पेत्रोविच को भोजन करना था. मेहमान और मेज़बान शिकारी कुत्तोंवाले श्वानगृह में गए, जहाँ पाँच सौ से अधिक फुर्तीले शिकारी कुत्ते अपनी कुत्तों की भाषा में किरीला पेत्रोविच की दानशीलता के गुण गाते हुए बड़े आराम से रह रहे थे. वहीं, सेना के डॉक्टर तिमोश्का की देखरेख में, बीमार कुत्तों के लिए अस्पताल भी था और साथ ही एक अलग दालान था, जहाँ कुत्तियाँ पिल्ले जनतीं और उन्हें दूध पिलातीं. किरीला पेत्रोविच को इस सुंदर कुत्ताघर पर गर्व था और वह अपने मेहमानों के सामने इसके बारे में डींग मारने से नहीं चूकता था, जिनमें से हर किसी ने कम-से-कम बीस बार उसे देख लिया था. अपने मेहमानों से घिरा हुआ, वह इस श्वानगृह में घूम रहा था, साथ में थे तिमोश्का एवम् अन्य कर्मचारी; अनेक छोटे श्वानगृहों के सामने रुककर बीमारों के स्वास्थ्य के बारे में पूछता, सख़्त एवम् स्पष्ट निर्देश देता, परिचित कुत्तों को अपने पास बुलाता और प्यार से उनसे बातें करता. मेहमानों ने किरीला पेत्रोविच के श्वानगृह की तारीफ़ करना अपना कर्तव्य समझा. केवल दुब्रोव्स्की चुप था और नाक-भौं सिकोड़ रहा था. वह बढ़िया शिकारी था. उसकी परिस्थिति उसे केवल दो जोड़ी शिकारी और एक जोड़ी पीछा करने वाले कुत्तों को पालने की इजाज़त देती थी, इस शानदार कुत्ताघर को देखकर वह बड़ी कठिनाई से अपनी ईर्ष्या पर काबू पा रहा था. “मुँह क्यों बना रहे हो, भई”, किरीला पेत्रोविच ने उससे पूछा, “या मेरा श्वानगृह तुम्हें पसंद नहीं आया?”
“नहीं,” उसने गंभीरता से उत्तर दिया, “श्वानगृह तो लाजवाब है, मगर तुम्हारे लोगों को तुम्हारे कुत्तों जैसा घर मुश्किल से ही मिलता होगा.”
कुत्तों की देखभाल करने वाले एक नौकर को गुस्सा आ गया, “हम अपने घरों में रहते हैं”, उसने कहा, “और ईश्वर तथा मालिक की कृपा से हमें कोई शिकायत नहीं है, मगर जो सच है, वो सच है, किसी-किसी ज़मींदार को तो इनमें से किसी भी छोटे श्वानगृह से अपना घर बदलना ठीक रहेगा. उसे यहाँ ज़्यादा आराम भी मिलेगा और खाना भी.” किरीला पेत्रोविच अपने नौकर की धृष्ठ टिप्पणी पर ज़ोर से ठहाका मारकर हँस पड़ा, मेहमान भी साथ-साथ हँसने लगे, हालाँकि वे यह भी महसूस कर रहे थे, कि नौकर का मज़ाक उन पर भी लागू होता है. दुब्रोव्स्की का मुख विवर्ण हो गया और वह एक भी शब्द नहीं बोला. इसी समय एक टोकरी में कुछ नवजात पिल्ले किरीला पेत्रोविच के पास लाए गए, वह उनमें व्यस्त हो गया, उनमें से दो को अपने लिए चुनकर, बाकी पिल्लों को गर्माने के लिए भेज दिया. इस बीच अन्द्रेइ गव्रीलविच कहीं छिप गया और किसी का भी इस ओर ध्यान नहीं गया.
मेहमानों के साथ श्वानगृह से लौटने के बाद किरीला पेत्रोविच भोजन के लिए बैठा, और तभी दुब्रोव्स्की को न देखकर उसके बारे में पूछने लगा. लोगों ने जवाब दिया कि अन्द्रेइ गव्रीलविच घर चले गए. त्रोएकूरव ने फ़ौरन पीछा करके उसे वापस लौटा लाने की आज्ञा दी. आज तक वह अनुभवी और कुत्तों के गुणों को परखने वाले, शिकार से संबंधित सभी संभावित विवादों को अचूक सुलझाने वाले दुब्रोव्स्की के बिना शिकार पर नहीं निकला था. उसके पीछे जो नौकर घोड़ा भगाते हुए गया था वह वापस लौटा. मेज़ पर अभी तक उसका इंतज़ार हो रहा था. नौकर ने बताया, कि अन्द्रेइ गव्रीलविच नहीं माने और वे वापस लौटना नहीं चाहते. अपनी आदत के मुताबिक शराब से उत्तेजित, किरीला पेत्रोविच को क्रोध आ गया और उसने दुबारा उसी नौकर को संदेश देकर भेजा, कि यदि वह पक्रोव्स्कोए में रात बिताने नहीं आया तो वह, यानी त्रोएकूरव, उससे हमेशा के लिए रूठ जाएगा. नौकर फिर घोड़ा दौड़ाते हुए गया, किरीला पेत्रोविच मेज़ से उठ गया, मेहमानों से बिदा ली और सोने चला गया.
दूसरे दिन उठते ही, पहला प्रश्न था, अन्द्रेइ गव्रीलविच यहाँ हैं? जवाब के बदले उसे तिकोना ख़त दिया गया, किरीला पेत्रोविच ने अपने सचिव को उसे ज़ोर से पढ़ने के लिए कहा और यह सुना:
“मेरे प्यारे दोस्त,
मैं तब तक पक्रोव्स्कोए नहीं आऊँगा, जब तक तुम कुत्तों के नौकर परामूश्का को माफ़ी माँगने के लिए मेरे पास नहीं भेजोगे, और यह मेरी मर्ज़ी होगी, कि मैं उसे माफ़ करूँ या सज़ा दूँ, और मैं तुम्हारे नौकरों के मज़ाक बर्दाश्त नहीं करूँगा, हाँ, और तुम्हारे मज़ाक भी मुझसे सहे न जाएँगे, क्योंकि मैं विदूषक नहीं, बल्कि ख़ानदानी ज़मींदार हूँ. आपकी सेवा के लिए सदैव तत्पर,
अन्द्रेइ दुब्रोव्स्की.”
शिष्ठाचार के मापदण्डों के लिहाज़ से देखा जाए, तो यह पत्र अत्यंत अशिष्ठतापूर्ण था, मगर किरीला पेत्रोविच को उसके अंदाज़ से नहीं, बल्कि उसमें छिपे संदेश से गुस्सा आ गया. “क्या!” नंगे पैर बिस्तर से उछलते हुए त्रोएकूरव दहाड़ा, “अपने लोगों को उसके पास क्षमा माँगने भेजूँ, और वह अपनी मर्ज़ी से उन्हें सज़ा देगा या माफ़ करेगा! क्या, सोच क्या रहा है वो, क्या उसे मालूम नहीं कि किससे पाला पड़ा है? मैं उसे...रोता हुआ मेरे पास आएगा, मालूम पड़ेगा उसे कि त्रोएकूरव से दुश्मनी मोल लेने का क्या नतीजा होता है!”
किरीला पेत्रोविच तैयार होकर हमेशा के तामझाम के साथ शिकार को निकला, मगर शिकार न मिला. दिनभर में केवल एक ख़रगोश ही दिखाई दिया और वह भी फ़िसल गया. तम्बू में खाना भी ठीक से नहीं बना था, या यूँ कहिए कि किरीला पेत्रोविच की पसंद का नहीं बना था. उसने रसोइये को पीटा, मेहमानों को गालियाँ दीं और वापसी में अपने पूरे तामझाम के साथ दुब्रोव्स्की के खेतों से होकर लौटा.
कुछ दिन बीते, मगर दोनों पड़ोसियों के बीच की दुश्मनी कम न हुई. अन्द्रेइ गव्रीलविच पक्रोव्स्कोए नहीं लौटा – किरीला पेत्रोविच का उसके बगैर दिल नहीं लगता था, उसका यह दुख अनेक अत्यन्त अपमानास्पद वाक्यों में प्रकट होता, जो स्थानीय कुलीनों की मेहेरबानी से नमक-मिर्च के साथ दुब्रोव्स्की तक पहुँच जाते. एक नई घटना ने समझौते की रही-सही उम्मीद पर भी पानी फेर दिया.
एक बार दुब्रोव्स्की अपनी छोटी-सी जागीर का चक्कर लगा रहा था, चर्च के वन के निकट आने पर उसने कुल्हाड़ियों की आवाज़ें सुनीं और एक ही मिनट बाद सुनी गिरते हुए पेड़ की चरमराहट. वह शीघ्रतापूर्वक वन में घुसा और पक्रोव्स्कोए के आदमियों पर टूट पड़ा जो चुपचाप उसके पेड़ों को काटकर ले जा रहे थे. उसे देखते ही वे भागने लगे. दुब्रोव्स्की ने अपेन कोचवान के साथ उनमें से दो को पकड़ लिया और उनके हाथ-पैर बांधकर अपने आँगन में ले आया. दुश्मन के तीन घोड़े भी विजेता को प्राप्त हुए. दुब्रोव्स्की को वास्तव में बहुत गुस्सा आया, इससे पहले त्रोएकूरव के आदमियों ने, जो जाने-माने लुटेरे ही थे, कभी भी उसकी जागीर में घुसने की हिम्मत नहीं की थी, क्योंकि उन्हें अपने मालिक के साथ उसके मित्रतापूर्ण संबंधों की जानकारी थी. दुब्रोव्स्की देख रहा था कि अब उन्होंने उनमें पड़ चुकी फूट का लाभ उठाया है, और उसने, युद्ध के सभी नियमों को ताक पर रखकर, उन्हें उन्हीं टहनियों से मारकर सबक सिखाने का निश्चय किया जिन्हें उन्होंने उसके वन से चुराया था, घोड़ों को अपने अस्तबल में शामिल करके काम पर भेज दिया.
इस घटना की ख़बर उसी दिन किरीला पेत्रोविच तक पहुँच गई. वह आपे से बाहर हो गया और आवेश में आकर अपने सभी सेवकों के साथ किस्तेनेव्को पर (उसके पड़ोसी के गाँव का यही नाम था) हमला बोलकर उसे नष्ट करके ज़मींदार को उसी के घर में कैद करने पर उतारू हो गया. ऐसे अभियानों को वह अशिष्ट, अभद्र नहीं मानता था. मगर शीघ्र ही उसके विचारों ने एक नया मोड़ ले लिया.
भारी कदमों से हॉल में चहलकदमी करते हुए उसकी नज़र खिड़की पर पड़ी और उसने प्रवेशद्वार के पास एक त्रोयका को रुकते हुए देखा; चमड़े की टोपी और रोएँदार ओवरकोट पहने एक नाटा आदमी गाड़ी से उतरकर व्यवस्थापक के पास गया, त्रोएकूरव ने ग्रामप्रमुख शबाश्किन को पहचाना और उसे अंदर बुलाने की आज्ञा दी. एक मिनट बाद शबाश्किन झुक-झुककर सलाम करते हुए और आज्ञा की प्रतीक्षा करते हुए त्रोएकूरव के सामने खड़ा था.
“ख़ुश रहो, क्या नाम है तुम्हारा,” त्रोएकूरव ने उससे कहा, “कैसे आए?”
“मैं शहर जा रहा था, हुज़ूर”, शबाश्किन ने जवाब दिया, और जाते-जाते इवान दिम्यानोव की ओर झाँक लिया, कि हुज़ूर का कोई हुक्म तो नहीं है.”
“बिल्कुल मौके पर आए हो, क्या नाम है तुम्हारा, मुझे तुमसे काम है. वोद्का पियो और सुनो.”
इतने मीठे स्वागत ने ग्रामप्रमुख को सुखद आश्चर्य में डाल दिया. उसने वोद्का पीने से इनकार कर दिया और यथासंभव एकाग्रता से किरीला पेत्रोविच की बात सुनने लगा.
“मेरा पड़ोसी”, त्रोएकूरव ने कहा, “छोटा-सा धृष्ठ ज़मींदार है, मुझे उसकी जागीर हथियानी है, तुम इस बारे में क्या सोचते हो?”
“हुज़ूर, अगर कोई दस्तावेज़ हो, या...”
“झूठ बोलते हो, भाई, कहाँ के दस्तावेज़ चाहिए तुम्हें! यही तो बात है. मज़ा तो इसी में है, कि बगैर किसी हक के जागीर छीन ली जाए. रुको, ठहरो, यह जागीर कभी हमारी हुआ करती थी, किसी स्पीत्सिन से ख़रीदी थी और फिर दुब्रोव्स्की के पिता को बेच दी थी. क्या इसी को आधार नहीं बनाया जा सकता?”
“अक्लमन्दी की बात करते हैं, हुज़ूर, शायद यह ख़रीद-फ़रोख़्त कानूनी तरीके से हुई होगी.”
“सोचो, भाई, ठीक से कोई बात ढूँढ़ो.”
“अगर, मिसाल के तौर पर, हुज़ूर अपने पड़ोसी से वह दस्तावेज़ हासिल कर लें, जिसकी बिना पर वह इस जागीर पर अपना हक जताते हैं, तो बेशक...”
“समझता हूँ, मगर यही दुर्भाग्य है,” उसके सारे कागज़ात आग में जल गए.”
“क्या फ़रमाते हैं, हुज़ूर, कागज़ात आग में जल गए! इससे बेहतर और क्या हो सकता है? तो, इस सूरत में, मुझे कानूनन हरकत में आने की इजाज़त दीजिए और बगैर किसी शको-शुबहे के आपको मुकम्मिल ख़ुशी हासिल हो जाएगी.”
“क्या तुम ऐसा सोचते हो? देख लो. मैं तुम्हारी कोशिशों पर निर्भर रहूँगा, और तुम मेरी मेहेरबानियों के बारे में निश्चिंत रहो.”
शबाश्किन ने ज़मीन तक झुककर सलाम किया, बाहर निकला और उसी दिन से सोची-समझी योजना पर अमल करने लगा, और उसकी फ़ुर्ती की बदौलत, ठीक दो हफ़्ते बाद दुब्रोव्स्की को शहर से सरकारी ख़त मिला, जिसमें किस्तेनेव्को स्थित जागीर के बारे में कैफ़ियत देने के लिए उसे बुलाया गया था.
इस अप्रत्याशित पूछताछ से अन्द्रेइ गव्रीलविच भौंचक्का रह गया और उसने उसी दिन एक अभद्रतापूर्ण पत्र लिखा, जिसमें उसने घोषणा की, कि किस्तेनेव्को गाँव उसे अपने स्वर्गीय पिता की मृत्यु के बाद विरासत में मिला है, विरासत के कानून के मुताबिक वह इसका स्वामी है और त्रोएकूरव को इससे कुछ लेना-देना नहीं है और उसकी जागीर पर गैरों द्वारा हक जताने की कोशिश करना सरासर गुंडागर्दी है.
इस पत्र से शबाश्किन मन-ही-मन बहुत ख़ुश हुआ. उसने भाँप लिया कि दुब्रोव्स्की को कानून का बहुत कम ज्ञान है और यह भी, कि उस जैसे क्रोधी स्वभाव के एवम् लापरवाह व्यक्ति को मुश्किल में डालना बहुत आसान है.
अन्द्रेइ गव्रीलविच ने बड़ी बेदिली से ग्रामप्रमुख द्वारा पूछे गए प्रश्नों को देखा और उसका विस्तार से उत्तर देना आवश्यक मुकदमा लम्बा खिंचने लगा. अपनी सच्चाई में विश्वास होने के कारण अन्द्रेइ गव्रीलविच उसके बारे में अधिक परेशान नहीं हो रहा था, उसे न तो इसका चाव था, न ही इस पर फेंकने के लिए उसके पास पर्याप्त धन था, और हालाँकि वह हमेशा इस नकल-नवीस जमात की बिकने को तैयार अंतरात्मा का मज़ाक उड़ाया करता था, उसके दिमाग में कभी ये ख़याल भी नहीं आया था, कि वह एक दिन चुगलखोरी का शिकार बनेगा. अपनी ओर से त्रोएकूरव भी स्वयम् ही दायर किए गए मुकदमे पर अधिक ध्यान नहीं दे रहा था, शबाश्किन ही उसकी ओर से भागदौड़ कर रहा था, उसके नाम से कार्य कर रहा था, जजों को धमकाता, ख़रीदता, कानून को उलटा-सीधा तोड़ता-मरोड़ता. और फिर, 9 फरवरी 18...को दुब्रोव्स्की को शहर की पुलिस से पत्र मिला, जिसमें ज़ेम्स्की अदालत में हाज़िर होकर उसके, याने लेफ्टिनेन्ट दुब्रोव्स्की और जनरल त्रोएकूरव के बीच विवादास्पद जागीर के मुकदमे का फ़ैसला सुनने एवम् अपनी रज़ामन्दी अथवा नाराज़गी ज़ाहिर करने के लिए लिखा गया था. दुब्रोव्स्की उसी दिन शहर के लिए रवाना हुआ, रास्ते में त्रोएकूरव ने उसे पीछे छोड़ दिया. उन्होंने बड़े घमंड से एक-दूसरे की ओर देखा, और दुब्रोव्स्की को अपने प्रतिद्वंद्वी के चेहरे पर एक दुष्ट मुस्कान दिखाई दी.
समझा. उसने काफ़ी गंभीरतापूर्वक पत्र का उत्तर दिया, मगर कुछ समय बाद वह अपर्याप्त ही प्रतीत हुआ.
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