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वक्त

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स्टेज पर बैठे युगल की जोड़ी बहुत सुन्दर लग रही थी तभी रिमझिम नें देखा दुल्हन दूल्हे का हाथ पकड़ कर आहिस्ता पूर्वक स्टेज से उतर किनारे बने लकड़ी से नृत्य के लिये बने फ़र्श पर जा थिरकनें लगी साथ में और भी नव युगल आ कर नृत्य करने लगे। उनको देख उसका मन कहीँ दूर पीछे के समय में विचरण करनें चला गया उसको याद आनें लगा कि जब उसका विवाह हुआ था तब कैसे पूरा समय गर्दन झुका कर नजरे नीची किये हुये बैठ कर गुजर गया था।

आज के बदलते समय में दूल्हा दुल्हन भी अपनी शादी का आनन्द उठा रहे है। अभी विचारों के भँवर में वो डूब उतरा ही रही थी कि तभी उसकी माँ झरना नें उसे विचारों में मग्न देख कोहनी मार कर पूछा कहाँ खो गयी। उसके द्वारा अपनें मन की बात कहने पर उन्होने मुस्कुराते हुये कहा कि “तुम्हारे समय में तो कम से कम जयमाल के बाद स्टेज पर बैठी थीं। हमारे समय में तो जयमाल का चलन शुरु ही हुआ था भीड़ में दरवाजे पर जयमाल करा कर दुल्हन को वापस अन्दर ले जाया जाता था। और जयमाल भी तुम्हारे समय जैसी सुन्दर सी नहीं बस एक फूलों की माला होती थी। ”

अब बात चल ही निकली थी तो इन दोनो की बात सुन कर झरना से भी बुजुर्ग एक महिला अपनें पोपले मुँह से अपनें विवाह के वक्त के बारे में बताते हुये कहनें लगीं कि “तुमनें तो जयमाल भी डाली चाहें फूलों की ही थी। हमारे समय में तो दरवाजे के पीछे से छिप कर जौं और पीले चावल ही वर पर डाल कर रस्म हो जाती थी। साथ ही उस समय वर का स्वागत करनें के लिये खाट बिछाई जाती थी उस पर कढाई की गयी चादर बिछाई जाती थी। यहीं पर सालियाँ मजाक में अक्सर टूटी खाट बिछा देतीं थी और खाट पर चादर के नीचे सूखी पत्तले या पापड़ बिछा देतीं थीं। साथ ही खाट के पाये के नीचे मिट्टी की दियालियाँ उल्टी करके रख दी जातीं थी जो वर के बैठते ही टूट जाती थी। और पापड़ व पत्तल भी खड़ खड़ कर टूटनें लगते थे। बड़ा मजा आता था। एक रस्म और होती थी कि दुल्हन के मुँह में विवाह के दिन साबित सुपाड़ी रख कर निकाल ली जाती थी और वही जूठी सुपाड़ी काट कर दूल्हे के द्वार पर स्वागत के समय खिलाई जाती थी। ”

“मजा तो तब भी आता था और अब भी आता है। तब सादगी ज्यादा थी और अब दिखावा ज्यादा है।

बीता समय वापस नहीं लाया जा सकता। कल क्या होगा नहीं जानते। जो आज हो रहा है उसका आनन्द उठाओ दिल को मत मारो आओ चलो हम सब भी इन सबके साथ नृत्य करके बीते पलों को याद करके अपना आज का यह ख़ुशनुमा वक्त बितायें। ”


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