Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

मेरी ज़िन्दगी का सफर

मेरी ज़िन्दगी का सफर

7 mins
473


मै ज्ञान प्रिया जिसे आज बहुत से लोग इसी नाम से पहचानते हैं। और बहुत से लोग मुझे मेरे अपने नाम से यानी प्रियंका नाम से जोकि मेरी असली पहचान है, के नाम से जानते हैं। ज्ञान प्रिया नाम कभी मैनें सपने में भी नहीं सोचा था कि ये नाम कभी मेरी पहचान बन जाएगी।

मै हमेशा सोचती थी कि जब मै इस दुनिया से अलविदा होकर जाऊँ तो अपनी एक पहचान बनाकर जाऊँ। सबके दिलों में अपनी एक मीठी याद छोड़कर जाऊँ। ताकी लोग मुझे भी याद रख सकें। सबकी जुबान पर औरों की तरह मेरा भी नाम हो, देश विदेश में भी लोग मुझे मेरे कार्यों या मेरे लेखों से पहचाने। हालांकि मुझे एक लेखिका से सफल लेखिका बनने तक का सफर तय करना अभी बाकी है। और मै जानती हूँ कि मुझमें काबिलियत है और मेहनत के बाद ये और भी निखर सकता है। मै हर रोज इसे और निखारने के लिए प्रयासरत हूँ।

मेरा एक लेखिका बनने का सफर आज या कल का नहीं है, मेरा ये सफर तो बचपन में ही शुरू हो गया था। मुझमें कहानी लिखने की चाह तो बचपन में ही जन्म ले चुकी थी। मानती हूँ कि हर किसी के जीवन में एक अच्छी याद और एक बुरी याद जरूर होती है। और लोग अच्छी यादों को साथ लेकर चलते हैं और बुरी यादों को एक बुरा सपना मानकर भूल जाते हैं और होना भी यही चाहिए। मगर यहाँ मेरा मानना थोड़ा औरों से अलग है। बुरी यादें क्या होती हैं, एक गलती, या ऐसी गलतियाँ जिसके कारण आपका सबकुछ बर्बाद हो सकता है, सबकुछ खत्म हो सकता है या यूँ कहूँ ये आपके जीवन में घट जाता है तो आप उसे एक बुरी याद मान लेते हो और उससे सीखकर आगे बढ़ते हो, वैसे ही मैनें भी अपनी बुरी यादों से सीख ली और बुरी यादों के साथ में चलते हुए एक नयी पहचान बनाई। मै जानती हूँ कि कोई भी अपनी बुरी यादों को साझा करना नही चाहता, मगर आज मै यहाँ तक पहुँची हूँ तो इन्ही बुरी यादों से सीख लेते हुए। मुझे ये आप सबके साथ साझा नहीं करना चाहिए मगर जो मेरे लिए आगे बढ़ने में, उससे कुछ सीखने में सहायक बना, उसे मै कैसे भूल जाऊँ। मै अपनी आपसे अपनी बुरी और अच्छी यादें साझा करूँ उससे पहले मै आपको कुछ वर्ष पीछे लेकर जाना चाहूँगी।

मै ६वीं क्लास में थी, उस समय मुझे भी स्कूल में होने वाली बहुत सी प्रतियोगिता में भाग लेने का शौक होता था। मै पढ़ने में बहुत अच्छी तो नहीं पर हाँ सामान्य थी। मै हमेशा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होती थी। लेकिन फिर भी मै और भी बहुत सी जगह प्रतियोगिताओं में फंक्शनल प्रोग्राम में भाग लेना चाहती थी। कुछ में तो कर पाती थी, मगर कुछ में घर की आर्थिक स्थिति के कारण या घर में हिस्सा लेने की परमिशन ना होने के कारण, मुझे पीछे हटना पड़ता, अपनी ख्वाहिशों को दबाना पड़ता।

मगर स्कूल में जब भी कोई प्रोग्राम होता, जैसे २६ जनवरी,१५अगस्त या कोई कल्चर्ल प्रोग्राम होता तो उसमें मेरी ही क्लास की सहपाठी खुद से कोई नाटक लिखती और अपनी ही दोस्तों को लेकर उस नाटक को अंजाम देती। मेरी भी ऐसे ही प्रोग्राम में हिस्सा लेने की इच्छा होती लेकिन किन्हीं कारणों से नहीं ले पाती। फिर मैनें शुरू किया खुद से लिखने का संकल्प, मै पहले छोटी-छोटी कहानियाँ लिखती थी हालांकि वो उस समय पढ़ने लायक नहीं होती थी, मगर मेरी बतौर लेखिका बनने की शुरूआत हो चुकी थी। फिर जैसे जैसे समय आगे बढ़ा, सीरियल्स में मेरी रूचि होने लगी। तो उससे भी मैने सीखने का प्रयास करने लगी। मै सीरियल्स की तरह ही कभी ना खत्म होने वाली कहानियाँ लिखने लगी लेकिन कापियाँ जरूर भर जाती। जैसे समय आगे बढ़ा पढ़ाई का स्तर भी बढ़ गया।

देखते-देखते मै हाईस्कूल की परीक्षा पासकर इंटर फर्स्ट ईयर में दूसरे स्कूल में मेरा दाखिला हो गया। और तब तक मेरा लेखन कार्य कहीं दब-सा गया। पर पूरी तरह से खत्म नही हुआ था। बस कुछ सालों के लिए कुछ रूक सा गया था। फिर से समय नें रफ्तार पकड़ ली। मै इंटर से ग्रेजुएशन और ग्रेजुएशन के बाद मेरी शादी हो गयी। और तब तक मै शादी के बाद कुछ कुछ लिखना भूल चुकी थी। फिर बस घर गृहस्थी देखने लगी, उसके बाद मेरी जिंदगी नें फिर से करवट ली। मेरा बेटा ज्ञान मेरी जिंदगी में एक नयी रोशनी बनकर आया। तब शायद मेरा लेखन कार्य फिर से शुरू होने के आगाज भी साथ लेकर आया।

मै यहाँ पर पहुँचने से पहले मेरी मुलाकात एक दिन फेसबुक पर मोमस्प्रैस्सो के ऐड पर हुई। मैनें उसे इंस्टाल किया और कहानियाँ पढ़ने का शौक तो था ही मुझे पहले से। तब मुझे उस पर प्रियंका अमित गुप्ता के नाम से जानते थे। लेकिन मोमस्प्रैस्सो से जुड़ने के बाद एक गलती मुझसे हो गई। तब मुझे ये पता नहीं था कि लेखक या लेखिका यहाँ पर खुद से लिखते है। मै सोचती थी, कि कहीं से पाते होंगे मोमस्प्रैस्सो वाले। सो मै जब कहानियाँ पढ़ती तो मुझे जो ज्यादा पसंद आती थी उसे मै फेसबुक के एक ग्रुप में बिना उस लेखक के नाम से पोस्ट करती थी। तब शायद भगवान को भी ये मंजूर नही था कि दूसरों की मेहनत पर सुर्खियाँ पाऊँ। वो ये चाहते थे कि मै खुद से लिखूँ, जोकि मुझमें ऐसी काबिलियत है। और उसके दम पर अपनी पहचान बनाऊँ। इसीलिए मै पकड़ी गयी। मैने उस समय सबसे माफी माँगी और कभी दोबारा ऐसा ना करने का प्रण लिया। फिर मैने एक नया संकल्प लिया कि मै अब किसी की भी कहानियाँ साझा नहीं करूँगी, केवल अपनी लिखी कहानियों को कहीं और पर साझा करूँगी। फिर मै कहानियाँ तो लिखने लगी मगर उन सबमें से एक लेखिका पीछे पड़ गयी। मेरी पुरानी गलतियों को फिर से दिखाने लगी, जिन्हें मै छोड़कर उनसे सीखकर आगे बढ़ गई थी। उसकी वजह से मुझे प्रियंका अमित गुप्ता के नाम से डिफेम मिलने लगा। सबको मेरी पिछली गलतियाँ ही याद रहने लगी, और अब जो खुद से लिख रही थी वो किसी को नहीं दिखा, इसीलिए मैनें एक नयी पहचान बनाई ज्ञान प्रिया, और इस नाम नें मुझे एक नयी पहचान दिलायी। जैसे जैसे समय पंख लगाकर उड़ा।

मेरी खुद की लिखी कहानियों को भी बहुत प्यार मिला। मोमस्प्रैस्सो से बहुत सी प्यारी प्यारी सखियाँ भी मिली, जिन्होने मुझे खूब प्यार भी दिया और मेरी कहानियों को भी और साथ ही मेरा हौसला भी बढ़ाया।

फिर मैनें कविताएँ लिखने का भी प्रयास किया। हालांकि मुझे कविताएँ लिखने से बहुत डर लगता था और अब भी है। और मेरे प्रयास कुछ सफल भी हुए। और उन कविताओं को भी बहुत स्नेह मिला। मेरी पहली कविता शब्दसीढ़ी से शुरूआत हुई। जो एक साहित्यसागर ग्रुप में कुछ ५ शब्दों का टास्क दिया जाता था। जिससे उन्हें एक कविता का रूप देना होता था। मैने उससे शुरूआत की, धीरे-धीरे और भी कविताएँ लिखी। फिर एक दिन मुझे साहित्यपीडिया माँ शब्द पर कविता लिखने की प्रतियोगिता के बारे में पता चला। हालांकि मैनें कविता लिखना सीख ही रही थी मगर फिर भी मैने जैसे-तैसे कविता लिख दी उसमें। मुझे यकीन नही था कि मेरी भी कविता उसमें चुनी जाएगी। लेकिन मेरी भी कविता को चुना गया और चुना ही नही गया बल्कि मेरी कविता को अपनी किताब में स्थान भी दिया गया। और साथ में मुझे एक प्रशस्ति पत्र भी मिला, मेरा पहला प्रशस्ति पत्र था वफिर मेरी मुलाकात स्टोरीमिरर से हुई उस पर पहले प्रेम पर एक कहानी लिखने की प्रतियोगिता थी। पर इसमें भी मुझे कोई उम्मीद नहीं थी, उसमें विजेता बनने की। मगर परसो ही मुझे ये पता चला कि मेरा नाम उन २५ विजेताओं में चुना गया तब लगा मेरे सपनों को पंख लग गये। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये मेरी दूसरी जीत है। लेकिन अपने सपनों को पूरा करने का सफर अब भी बहुत लंबा है। मुझे अभी भी बहुत कुछ सीखना है और सीखती रहूँगी। तो ये थी मेरी अच्छी और बुरी यादों का पिटारा, जिनसे मैने बहुत कुछ सीखा है बुरी यादों से मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली है और अच्छी यादों से और आगे बढ़ने का हौसला। बस अपनी जीवन से जुड़ी इस कहानी को यहीं पर विराम देती हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract