चन्द्रमा की चाह
चन्द्रमा की चाह
"इतनी बड़ी ढ़ींगरी जैसी लड़की हो गई है, एक कप चाय बनाना तक नहीं सीखा । हे भगवान् , ससुराल में कैसे निभाएगी ये ?"
वो चाय चूल्हे पर चढ़ाकर कर जरा सा बाहर क्या निकल गई कि ताईजी को बस बोलने का बहाना ही मिल गया । पर उसकी मम्मी ही कहाँ कम थीं -
"क्या करूँ जिज्जी, मेरी तो कभी सुनी ही नहीं इसने, अब सास ही सुधारेंगी तब समझ आएगी ।"
मन में तो डर बैठ ही गया था प्रियंवदा के.... पता नहीं क्या होगा ससुराल जाने पर और पता नहीं कैसी होगी ये सास ! मन में बचपन से बैठा हुआ वो डर एकदम सच होकर सामने आया था कि बेहद व्यस्त और बड़े नियम कानून वाली सास मिली थीं उसको ! सुबह सबेरे उठ कर जाने कितने काम निपटा कर वो तो साढे नौ बजते बजते अपनी शाॅप के लिये निकल जातीं तो पति और देवर के नाश्ते की जिम्मेदारी स्वयमेव उसके ऊपर आ जाती । दो बजे तक ससुर जी घर आते थे तो लंच समय से बनाकर तैयार रखना ही पड़ता था । हाँ, डिनर जरूर सास उसके साथ खड़ी हो कर बनाती थीं क्योंकि उस समय पूरा परिवार एक साथ बैठकर खाना खाता था । लेकिन क्या इतना ही ? अब समझ में आया था कि ये घर के काम तो पूरे दिन चलते हैं और वह अनगढ़ हाथों से उन्हे निबटाती, लगभग रोज ही किसी न किसी बात के लिये सासूजी का लेक्चर सुनने को अअभिशप्त रहती । काफी कोशिश करती थी वह कि गलतियाँ न हों पर हर रोज कोई नई मुसीबत सर पर पड़ी ही रहती थी । अब कल शाम को ही.... पतिदेव ने कुछ मित्रों को घर पर बुला लिया था और नई नई बीबी से चाय पकौड़ों की फरमाइश कर डाली । थोड़ी चुहुलबाज़ी और थोड़ी छेड़छाड़ करते पति और उनके दोस्त...उस समय उसका मूड बहुत अच्छा था । हल्की हल्की धुन पर थिरकते हुए उसने कढाई चढ़ाई और अलमारी के नीचे वाली दराज में रखा हुआ तेल झटके से उठाकर जो कढ़ाई में डालने चली .... शायद ढक्कन ठीक से बंद नहीं था .... शायद कैन ज्यादा भरा हुआ था .... या पता नहीं क्या हुआ ..... हर तरफ सिर्फ़ तेल था और वह हतप्रभ सी बीच में खड़ी हुई थी । अब क्या करेगी वह ? कुछ पता नहीं था । शायद भगवान जब मुसीबत भेजते हैं तो उसका निदान भी भेजते होंगे तभी तो ठीक उसी समय उसकी सास ने घर में प्रवेश किया और किचन के दरवाजे पर आकर खड़ी हो गईं । दो मिनट उन्होंनें वस्तुस्थिति को समझने में लिया और फिर बोलीं
" गैस बंद करो, तुम्हारी कढ़ाई जल रही है । और जहाँ खड़ी हो वहीं रहना वर्ना पैर फिसल जाएँगें ।"
एक दो मिनट के अंदर वो कपड़े बदल कर, पानी की बाल्टी और सर्फ के डिब्बे के साथ सामने खड़ी थीं । समस्या का निदान समझ में आते ही प्रियंवदा के होंठों पर मुस्कान आ गई और फिर तो सास बहू ने मिलकर किचन के साथ और भी न जाने कितना कुछ चमका चमका कर साफ कर लिया । चन्द्रमा को सिर्फ चाहने भर से कुछ नहीं होता, पा लेने का मर्म आज सासू माँ ने उसे सिखा दिया था ।