ये जिंदगी के मेले

ये जिंदगी के मेले

3 mins
839


आलीशान होटल में, एक गोल मेज़ के गिर्द लगी चार कुर्सियों पर वे चारों बैठे हुए थे। उनमें से पहला शहर का बड़ा और रसूखदार बिजनेस मैन था तो दूसरा, पूरे शहर पर राज करने वाले डी एम का पिता था। तीसरा राज्य सरकार में मंत्री था और चौथा इन्कम टैक्स कमिश्नर था। अपनी उँची हैसियत के अलावा वो चारों आपस में बड़े गहरे मित्र भी थे।

कुछ एक जाम गले के नीचे उतरने के बाद पहला अचानक भावुक हो उठा....

"कुछ नहीं है साला इस जिंदगी में ! जैसे लगती है सारी मेहनत मिट्टी में चली गई .... पाई-पाई करके कमाई हुई मेरी सारी दौलत, मेरा नाकारा बेटा दोस्ती - यारी, पार्टी-सिनेमा और लड़कीबाजी में गँवाने को तैयार बैठा है !"

दूसरे ने पहले को सांत्वना दी ...

"इतनी चिंता मत करो, अभी वह बच्चा है, धीरे धीरे सब समझ आ जाएगी । मुझे देखो, कभी अपने शरीर को शरीर नहीं समझा .... सबकुछ भूल कर लड़के को काबिल बनाया पर मुझे इसके बदले क्या मिला ? बेटे को कभी मेरे लिये एक मिनट की फुर्सत नहीं है, मानों मेरे लिए नौकर रख कर उसने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली, उधर उसकी बीबी ऐसी कर्कशा आई है जो कब और किसके सामने इज़्ज़त उतारकर रख देगी पता ही नहीं होता। पता नहीं भगवान मुझे किस अपराध की सजा दे रहा है जो ऐसे दिन देखने पड़ रहे हैं "

इस पर नेताजी ने सिर हिलाया ....

"नहीं नहीं, तुमको तो पता ही नहीं कि मैं किस हालत से गुज़र रहा हूँ। पागल कुत्ते की तरह मीडिया मेरे पीछे पड़ा हुआ है। आजकल तो लल्लू पंजू भी जर्नलिस्ट बन कर मुझे धमकाने चले आ रहे हैं। मैं कभी इसके मुँह में नोट ठूँस रहा हूँ तो कभी उसको चुप करा रहा हूँ। समझ में ही नहीं आता कि कैसे इस जंजाल से बाहर निकलूँगा ..."

अब तक तो कमिश्नर की आँखों से आँसू बहने लगे थे ....

"जब तक आँफिस में बैठा होता हूँ, पूरा शहर मेरे सामने आँख ऊपर करने से डरता है, वो इमेज है मेरी पर घर जाते ही सबकुछ धरा का धरा रह जाता है । पता ही नहीं कि मेरी नीम पागल बीबी कब क्या कांड कर बैठेगी। कभी कभी तो लगता है भगवान ने मेरे साथ बड़ी नाइन्साफी की है। वो ऊपर वाला मिला कभी तो उससे पूछूँगा जरूर कि मुझसे ही उसे क्या दुश्मनी है ।"

दुःख में डूबे ये उद्गार अभी पूरे हुए भी नहीं थे कि अचानक वहाँ एक हल्का सा धमाका हुआ और सब आँखें फाड़े देखते रह गये कि टेबल के बीच में पड़े, किसी की कार के की रिंग में लगे गणेश जी की आँखें चमकने लगी। अरे, अब तो वे बातें भी कर रहे थे....

"तुम में से जो भी चाहे, अपनी सफलता से अपने इन दुःखों को इसी क्षण बदल सकता है। जल्दी बोलो !"

चारों के चारों ही तो कुछ बोलना चाहते थे पर न जाने क्या सोचकर, चुप रह गए। अब वे एक दूसरे से नज़रें चुरा रहे थे.... फिर उनमें से एक खड़े होकर बोला,

"लगता है आज मुझे कुछ ज्यादा चढ़ गई है, अब घर जाना चाहिये !"

और उसने गणेश जी वाली की रिंग उठा कर जेब में रख ली ।



Rate this content
Log in