हम होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब
"पापा मुझे आप से कुछ बात करनी है, बहुत जरूरी !"
इतनी-इतनी व्यस्तता के बीच, बेटी रेखा ने आकर कहा तो जल्दी में मुँह में दाल-चावल ठूँसते हुए रामसेवक जी का हाथ रुक गया...
"हाँ, कहो !"
"पापा मुझे वोट देने नहीं जाना !"
चौंक से गए वह। इस बार, जब इसका पहला वोट है, इसे तो उत्साह से भरा होना चाहिए था। फिर ये 'उनकी' बेटी है... पार्टी के उस कर्मठ कार्यकर्ता की, जो चुनाव का एनाउंसमेंट होने के बाद से ही पागलों की तरह भागदौड़ कर रहा है। रैलियों के लिए मंच सज्जा से लेकर भीड़ जुटाने तक, सुदूर गांवों के घर-घर तक पँहुचकर सबको अपनी पार्टी के पक्ष में कर लेने तक, शहर भर में पोस्टर विज्ञापन से लेकर बूथ संचालन तक... है कोई दूर-दूर तक जो इन कामों में उनकी बराबरी कर सके ? उनकी पार्टी के सारे बड़े नेता उनको जानते पहचानते हैं, इज्जत करते हैं, यहाँ तक कि उनके घर में भी आते-जाते रहते हैं। लाखों की संख्या में नवयुवक उनके हाथ के नीचे काम करते हैं और एक इशारे पर कुछ भी कर जाने के लिए तैयार रहते हैं। उनको अच्छी तरह मालूम है कि कुछ तो ऐसा है उनके व्यक्तित्व में, कि उनके घर में भी कोई उनसे नजर मिला कर बात करने की हिम्मत नहीं करता।
"क्यों नहीं देना है वोट ?"
बच्ची की ना समझी भरी जिद को समझने की नीयत से पूछा उन्होंने ! स्पष्ट देखा कि रेखा थोड़ा सहम सी गई थी। थूक निगलते हुए बोली,
"हमको कोई कैंडिडेट पसंद नहीं है।"
अब गुस्सा आ गया उनको !
"अपने नेता को जिताने के लिये तुम्हारा बाप धूप में भूखा-प्यासा ऐसे-ऐसे लोगों की चिरौरी विनती करता घूमता रहता है जिसके पास तुम खड़ी तक नहीं रह सकोगी और तुमको कोई पसंद नहीं है ? भूल गईं कि तुम्हारा ये सारा ऐश-आराम इन्हीं नेताओं की बदौलत है।"
पिता ने कहा तो रेखा के चेहरे पर तैश की लकीरें सी खिंच गईं।
"नहीं पापा, ये सब आपकी मेहनत और वफादारी की बदौलत है, किसी की कृपा से नहीं !"
फिर हिकारत से बोली,
"ये लोग तो सिर्फ अपनी चिंता में मगन है, देश के लिए कोई नहीं सोंचता। किसी भी पार्टी की सरकार हो, बस वही लोग अपने दोस्तों यारों के साथ अमीर होते हैं, साधन संपन्न होते हैं। जनता अपनी रोजी-रोटी और जरूरतों के लिए जान भी दे दे, किसी को परवाह नहीं।"
बेटी का आक्रोश देखकर वे कुछ सोच में पड़ गए।
"इतनी छोटी सी उम्र में इतने बगावती तेवर ?"
"हाँ पापा, हम पढ़ी लिखी जेनरेशन हैं। सोचते समझते भी हैं, देख भी सकते हैं कि क्या-क्या हो रहा है। हमें न बेवकूफ बनाया जा सकता है न हम किसी की चाल में आएँगे।"
समझ गए रामसेवक कि इस पीढ़ी को डाँटकर या दबा कर अपनी बात नहीं मनवाई जा सकती।
"तो वोट न देकर तुम क्या बदल लोगी ? बल्कि अगर तुम्हारी अपनी भागीदारी न हो तो बाकी लोगों के चुनाव पर ऊँगली उठाने का अधिकार तुम्हें क्यों मिले ?"
इस बार रेखा सोच में पड़ी हुई थी।
"पढ़ी लिखी हो तो पलायन मत करो। सोचो समझो, सही कैंडिडेट चुनो। सिर्फ टीवी वगैरह देख कर बड़े बड़े नेताओं की बात करने के बजाय अपने एरिया के कैंडिडेट्स के बारे में पता करो। अच्छे लोग भी हैं समाज में, बदलाव चाहती हो तो उन्हें खोजो !"
सही तो कह रहे हैं पापा, रेखा सोच रही थी। उन्होंने तो एक बार भी अपनी पार्टी को वोट देने की बात नहीं की ! आक्रोश पिघलने लगा था। वह युवा है, स्थितियों को सुधारने की जिम्मेदारी है उस पर।
"ठीक है पापा, मैं अपने देश से प्यार करती हूँ इसलिए वोट देने जरूर जाऊँगी।"
उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान खिल उठी थी।
