संस्कारों की वसीयत
संस्कारों की वसीयत
आज सुबह-सुबह राहुल ने अपनी माता जी को फोन कर कहा माँ आप यहीं पूना आ जाइए हमारे पास वहां मुंबई में अकेले क्यों रह रही हो हमें भी आपके बिना अच्छा नहीं लगता है।
असल में कुछ महीनों पहले ही राहुल के पिता जी का देहावसान हो गया था तब से माताजी अपने पुश्तैनी घर में अकेले ही रह रही थी और राहुल नौकरी के कारण अपनी पत्नी व दो बच्चों के साथ पुणे में रहता था। राहुल कई बार फोन भी कर चुका था पर माँ थी कि मानती ही नहीं थी आखिर एक दिन राहुल ने माँ से आमने- सामने बैठ कर पूछना चाहा कि क्या बात है माँ अपने निर्णय पर इतना अडिग क्यों है।
माँ का कहना था कि पहले कुछ महीने तो तुम लोगों को मेरा साथ रहना अच्छा लगेगा लेकिन धीरे-धीरे रिश्तों में कड़वाहट आने लगेगी इससे अच्छा है हम दूर रहकर ही अपने रिश्तों की मिठास बरकरार रखें। राहुल ने जवाब दिया माँ ऐसा कुछ भी नहीं होगा विश्वास रखिए,लेकिन मां वास्तविकता से परिचित थी जो आए दिन सुनने व देखने में आता है उसे नकारा नहीं जा सकता। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए माँ ने कहा मेरे पास वसीयत में तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं है क्योंकि तुम्हारे पिताजी की आखिरी ख़्वाहिश थी कि इस पुश्तैनी घर को मेरे बाद एक अनाथालय को दान में दिया जाए। तब राहुल ने कहा यह तो बहुत ही अच्छा निर्णय है। और जब तक वसीयत में कुछ भी नहीं है वाली बात है तो यह सही नहीं है क्योंकि अगर आप के पोते पोतियो को आप अपने संस्कारों से पोषित करेंगीं तो वह किसी भी वसीयत से कम नहीं होंगे। आपने और पिताजी ने मुझे पढ़ा लिखा कर इस काबिल तो बना ही दिया है कि आज आप लोगों के आशीर्वाद से मैंने अपना घर भी ख़रीद लिया है और नौकरी भी अच्छी है और यह सब हासिल करने में आपके द्वारा दिए गए संस्कारों का बहुत बड़ा हाथ है। और मैं भी यही चाहता हूँ कि आप के पोते पोती को भी यह सब मिले ताकि उन्हें भी किसी वसीयत की कभी-भी कोई आवश्यकता ना हो।
किसी तरह से राहुल ने अपनी माँ को काफी ना नुकुर के बाद पुणे आने के लिए मना ही लिया। दादी को घर पर देखते ही बच्चों की खुशी का ठिकाना नहीं था और राहुल भी अब अपने बच्चों की परवरिश को लेकर निश्चिंत था क्योंकि बच्चे अब सुरक्षित व संस्कारी हाथों में थे, माँ के चेहरे पर भी सुकून और शांति का भाव था और राहुल की पत्नी निशा यह सब देखकर आत्मिक सुख का अनुभव कर रही थी।