शव पे राजनीति
शव पे राजनीति
हर भारतीय की तरह मैं भी चाय का तलबग़ार हूँ ! हमारी शरीक़-ऐ हयात ज़रा मायके का चक्कर लगाने गयी हुई थी क्यूंकि बालक-बालिका की गर्मी की छुट्टियाँ चालू हो चुकी थीं !
क्यूंकि चाय बनाने का ज्ञान मुझे इतना था जितना तुषार कपूर को अभिनय का है तो इसलिए मैंने चाय बाहर एक टपरे पर पीना उचित समझा ! मैं जब टपरे पर पहुंचा तो देखा कि उस टपरे से कुछ दूरी पर एक कुत्ते की लाश पड़ी हुई है, शायद उसकी मृत्यु किसी वाहन से टकराने के कारण हुई थी !
उसके साथी श्वानों को शायद ख़बर नहीं थी उनके साथी की गति की इसलिए उसका शव सड़क के एक कोने पर तन्हा पड़ा था। मैं चाय की चुस्की ले ही रहा था कि एक गाड़ी उस श्वान के शव के पास एक गाड़ी आकर रुकी और उसमें से पहले कमांडो निकले और फिर धोती-धारी व्यक्ति का कार से बाहर आगमन हुआ ! उस व्यक्ति ने श्वान-शव पे फूल चढ़ाये और हमारी और मुख़ातिब होकर भाषण की मुद्रा में बोलना शुरू किया, "प्रस्तुत महाशयों ! देखिये इस कुत्ते के शरीर के रंग को जो कि केसरी रंग का निकटवर्ती रंग के समकक्ष लग रहा है और इस कुत्ते को मैने कई बार फलां मंदिर के बाहर घूमते देखा है ! इसलिए मेरा आग्रह है कि इस कुत्ते के परिचितों को खोजा जाए और हमारा दल इनका धूमधाम से अंतिम क्रिया करेगा !
वो और बोलते इससे पहले ही एक और गाड़ी उस कुत्ते के शव के समीप आकर रुकी और कमांडो के बाहर निकलने के पश्चात, चिकन का कुर्ता धारण किये एक टोपीधारी नेता बाहर निकले और कहना शुरू किया, "देखिये इस लाश को जिसके गले में एक हरी डोरी बंधी है और इस कुत्ते को कई बार मैंने एक दरगाह के आस-पास चक्कर लगाते देखा है ! तो इस लाश को हमारे लोग अपने रिवाज़ों के हिसाब से दफन करेंगे इसलिए इनके स्वजनों को खोजा जाए !"
इतने में इन कारों के काफ़िले में एक और कार का इज़ाफ़ा हुआ और एक और नेता बाहर निकले और उन्होनें भी उस शव के पास बोलना शुरू किया, "देखिये महोदयों ! इस कुत्ते की लाश को देखिये, ये ज़रा बायीं और मुड़ी हुई है तो ये हमारे "चीनी-आका" के पंथ को "फॉलो" करते थे, इसलिए इन्हें शहीद का तमगा दिया जाएगा और इनके नाम का एक स्मारक यहाँ खड़ा किया जाएगा ! उस स्मारक का उद्घाटन इनके परिजन करेंगे इसलिए इनके परिजनों को खोजा जाए, तभी अचानक एक कार और उस काफ़िले की कारों की संख्या में वृद्धि करते हुए उस शव के निकट आकर रुकी और उस कार में से एक बहन जी बाहर निकल कर बोली, "देखिये ! ये कुत्ता उस दलित बस्ती के सामने मारा गया है तो इसके शव पर हमारी पार्टी का हक़ है ! हाथी के साथ इस कुत्ते की भी प्रतिमा का निर्माण हम यहाँ करवाएंगे और उन प्रतिमाओं का उद्घाटन इनके परिजनों के समक्ष हम करेंगे !"
उनका इतना ही कहना था कि बाकी नेता मुखर हो गए और वहीं बहसबाज़ी करने लगे। शायद तब तक उस कुत्ते के निकट परिजनों को उसके गति की ख़बर लग चुकी थी और उन सभी राजनेताओं को अपने सम्बन्धी की हत्या का क़ुसूरवार मानकर उन्होनें उन सभी को खदेड़ना शुरू कर दिया ! नेताओं को खदेड़ने के बाद वो सभी उस शव के पास आकर उसे चाटने लगे और शायद यही उनके शोक का तरीका था कि वो वहीं बैठकर उसके उठने का इंतज़ार करने लगे।
उधर वो खदेड़े गए राजनेता लोग टकटकी लगाए देख रहे थे कि कब इनका शोक ख़त्म हो और वो इनसे मतदान की अपील करे ! मैं सोच रहा था कि क्या ये कहानी उस कुत्ते की ही है या फिर......